Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 95
________________ दस नियुक्तियों का रचनाक्रम यद्यपि दसों नियुक्तियां एक ही व्यक्ति की रचनाएं हैं, फिर भी इनकी रचना एक क्रम में हुई होगी। आवश्यकनियुक्ति में जिस क्रम से इन दस नियुक्तियों का नामोल्लेख है " उसी क्रमसेउनकी रचना हुई होगी, विद्वानों के इस कथन की पुष्टि निम्न प्रमाणों से होती है - 1. आवश्यकनियुक्ति की रचना सर्वप्रथम हुई है, यह तथ्य स्वतः सिद्ध है, क्योंकि इसी नियुक्ति में सर्वप्रथम दस नियुक्तियों की रचना करने की प्रतिज्ञा की गई है और उसमें भी आवश्यक का नामोल्लेख सर्वप्रथम हुआ है।" पुनः आवश्यकनियुक्ति सेनिह्नवाद से सम्बंधित सभी गाथाएं (गाथा 778 से784 तक)" उत्तराध्ययननियुक्ति (गाथा 164 से178 तक)” में ली गई है। इससे भी यही सिद्ध होता है कि आवश्यकनियुक्ति के बाद ही उत्तराध्ययननियुक्ति आदि अन्य नियुक्तियों की रचना हुई है। आवश्यकनियुक्ति के बाद सबसे पहले दशवैकालिकनियुक्ति की रचना हुई है और उसके बाद प्रतिज्ञागाथा के क्रमानुसार अन्य नियुक्तियों की रचना की गई। इस कथन की पुष्टि आगे दिए गए उत्तराध्यययननियुक्ति के संदर्भो से होती है। 2. उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा 29 में 'विनय' की व्याख्या करते हुए यह कहा गया है 'विणओपुबुद्दट्ठा' अर्थात विनय के सम्बंध में हम पहले कह चुके हैं। इसका तात्पर्य यह है कि उत्तराध्ययननियुक्ति की रचना से पूर्व किसी ऐसी नियुक्ति की रचना हो चुकी थी, जिसमें विनय सम्बंधी विवेचन था। यह बात दशवैकालिकनियुक्ति को देखने से स्पष्ट हो जाती है, क्योंकि दशवैकालिकनियुक्ति में विनय समाधि नामक नवें अध्ययन की नियुक्ति (गाथा 309 से 326 तक) में 'विनय' शब्द की व्याख्या है। इसी प्रकार उत्तराध्ययननियुक्ति (गाथा 207) में कामापुबुद्दिट्ठा' कहकर यह सूचित किया गया है कि काम के विषय में पहले विवेचन किया जा चुका है। यह विवेचन भी हमें दशवैकालिकनियुक्ति की गाथा 161 से163 तक में मिल जाता है।" उपर्युक्त दोनों सूचनाओं के आधार पर यह बात सिद्ध होती है कि उत्तराध्ययननियुक्ति, दशवैकालिकनियुक्ति के बाद ही लिखी गई। 3. आवश्यकनियुक्ति के बाद दशवैकालिकनियुक्ति और फिर उत्तराध्ययननियुक्ति की रचना हुई, यह तो पूर्व चर्चा से सिद्ध हो चुका है। इन तीनों नियुक्तियों की रचना के पश्चात आचारांगनियुक्ति की रचना हुई है, क्योंकि आचारांगनियुक्ति की गाथा 5 में कहा गया है - 'आयारेअंगम्मिय पुबुद्दिट्ठा चउक्कयं निक्खेवो' - आचार और अंग के निक्षेपों का विवेचन [91].

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