Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 112
________________ विस्तार से चर्चा करती है, अपितु उनका आदरपूर्वक स्मरण भी करती है / भद्रगुप्त आरक्षित से दीक्षा में ज्येष्ठ हैं, ऐसी स्थिति में उनके द्वारा रचित नियुक्तियों में आर्यरक्षित का उल्लेख इतने विस्तार से एवं इतनेआदरपूर्वक नहीं आना चाहिए / यद्यपि परवर्ती उल्लेख एकमत से यह मानते हैं कि आर्यभद्रगुप्त की निर्यापना आर्यरक्षित ने करवाई, किंतु मूल गाथा को देखने पर इस मान्यता के बारे में किसी को संदेहभी हो सकता है, मूलगाथा निम्नानुसार है 'निज्जवण भद्दगुत्तेवीसुं पढणं च तस्स पुव्वगया पव्वाविओय भाया रक्खिअखमणेहिं जणओ'। - - आवश्यकनियुक्ति- 776 यहां निजवण भद्दगुत्ते' में यदि भद्दगुत्ते' को आर्ष प्रयोग मानकर कोई प्रथमा विभक्ति में समझे तो इस गाथा के प्रथम दो चरणों का अर्थ इस प्रकार भी हो सकता हैभद्रगुप्त नेआर्यरक्षित की निर्यापना की और उनसे समस्त पूर्वगत साहित्य का अध्ययन किया। गाथा के उपर्युक्त अर्थ को स्वीकार करने पर तो यह माना जा सकता है कि नियुक्तियों में आर्यरक्षित का जो बहुमान पूर्वक उल्लेख है, वह अप्रासंगिक नहीं है। क्योंकि जिस व्यक्ति ने आर्यरक्षित की निर्यापना करवाई हो और जिनसे पूर्वो का अध्ययन किया हो, वह उनका अपनी कृति में सम्मानपूर्वक उल्लेख करेगा ही। किंतु गाथा का इस दृष्टि से किया गयाअर्थ चूर्णि में प्रस्तुत कथानकों के साथ एवं नियुक्ति गाथाओं के पूर्वापर प्रसंग को देखते हुए किसी भी प्रकार संगत नहीं माना जा सकता है। चूर्णि में तो यही कहा गया है कि आर्यरक्षित ने भद्रगुप्त की निर्यापना करवाई और आर्यवज्र से पूर्व साहित्य का अध्ययन किया यहां दूसरे चरण में प्रयुक्त तस्स' शब्द का सम्बंध आर्यवज्र से हैं, जिनका उल्लेख पूर्व गाथाओं में किया गया है। साथ ही यहां भगुत्ते' में सप्तमी का प्रयोग है, जो एक कार्य को समाप्त कर दूसरा कार्य प्रारम्भ करने की स्थिति में किया जाता है। यहां सम्पूर्ण गाथा का अर्थ इस प्रकार होगा - आर्यरक्षित ने भद्रगुप्त की निर्यापना (समाधिमरण) करवाने के पश्चात (आर्यवज्र से) पूर्वो का समस्त अध्ययन किया है और अपने भाई और पिता को दीक्षित किया। यदि आर्यरक्षित भद्रगुप्त के निर्यापक हैं और वे ही नियुक्तियों के कर्ता भी हैं, तो फिर नियुक्तियों में आरक्षित द्वारा निर्यापन करवानेके बाद किए गए कार्यों का उल्लेख नहीं होना था, किंतु ऐसा उल्लेख है, अतः नियुक्तियांकाश्यपगोत्रीयभद्रगुप्त की कृति नहीं हो सकती है। 2. दूसरी एक कठिनाई यह भी है कि कल्पसूत्र स्थविरावली के अनुसार आरक्षित आर्यवज्र से8 वीं पीढ़ी में आते हैं। अतः यह कैसे सम्भव हो सकता है कि 8 वीं पीढ़ी में होने वाला व्यक्ति अपने से आठ पीढ़ी पूर्व के आर्यवज्र से पूर्वो का अध्ययन करे। [108]

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