Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 96
________________ पहले हो चुका है। दशवैकालिकनियुक्ति में दशवैकालिकसूत्र के क्षुल्लकाचार अध्ययन की नियुक्ति (गाथा 79-88) में 'आचार' शब्द के अर्थ का विवेचन तथा उत्तराध्ययननियुक्ति में उत्तराध्ययनसूत्र के तृतीय 'चतुरंग' अध्ययन की नियुक्ति करतेहुएं गाथा 143-144 में 'अंग' शब्द का विवेचन किया है। अतः यह सिद्ध होता है कि आवश्यक, दशवैकालिक एवं उत्तराध्ययन के पश्चात ही आचारांगनियुक्ति का क्रम है। .. ___ इसी प्रकार आचारांग की चतुर्थ विमुक्तिचूलिका की नियुक्ति में 'विमुक्ति' शब्द की नियुक्ति करते हुए गाथा 331 में लिखा है कि 'मोक्ष' शब्द की नियुक्ति के अनुसार ही 'विमुक्ति' शब्द की नियुक्ति भी समझना चाहिए। चूंकि उत्तराध्ययन कें अट्ठाईसवें अध्ययन की नियुक्ति (गाथा 497-98) में मोक्ष शब्द की नियुक्ति की जा चुकी थी। अतः इससे यही सिद्ध हुआ कि आचारांगनियुक्ति का क्रम उत्तराध्ययन के पश्चात् है / आवश्यकनियुक्ति, दशवैकालिकनियुक्ति, उत्तराध्ययननियुक्ति एवं आचारांगनियुक्ति के पश्चात् सूत्रकृतांगनियुक्ति का क्रम आता है। इस तथ्य की पुष्टि इस आधार पर भी होती है कि सूत्रकृतांग-नियुक्ति की गाथा 99 में यह उल्लिखित है कि 'धर्म' शब्द के निक्षेपों का विवेचन पूर्व में हो चुका है (धम्मोपुबुद्दिट्ठो)।" दर्शवैकालिकनियुक्ति में दशवैकालिकसूत्र की प्रथम गाथा का विवेचन करते समय धर्म' शब्द के निक्षेपों का विवेचन हुआ है। इससे यह सिद्ध होता है कि सूत्रकृतांगनियुक्ति, दशवैकालिकनियुक्ति के बाद निर्मित हुई है। इसी प्रकार सूत्रकृतांगनियुक्ति की गाथा 127 में कहा है ‘गंथोपुव्वुद्दिट्ठो"। हम देखते हैं कि उत्तराध्ययननियुक्ति गाथा 267-268 में ग्रंथ शब्द के निक्षेपों का भी कथन हुआ है।" इससे सूत्रकृतांगनियुक्ति भी दशवैकालिक-नियुक्ति एवं उत्तराध्ययननियुक्ति से परवर्ती ही सिद्ध होती है। 4. उपर्युक्त पांच नियुक्तियों के यथाक्रम से निर्मित होने के पश्चात् ही तीन छेद सूत्रों यथादशाश्रुतस्कंध, बृहत्कल्प एवं व्यवहार सूत्र पर नियुक्तियां भी उनके उल्लेख क्रम से ही लिखी गई हैं, क्योंकि दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति के प्रारम्भ में ही प्राचनीगोत्रीय सकल श्रुत के ज्ञाता और दशाश्रुतस्कंध, बृहत्कल्प एवं व्यहार के रचयिता भद्रबाहु को नमस्कार किया गया है। इसमें भी इन तीनों ग्रंथों का उल्लेख उसी क्रम से है जिस क्रम से नियुक्ति लेखन की प्रतिज्ञा में है। अतः यह कहा जा सकता है कि इन तीनों ग्रंथों की नियुक्तियां इसी क्रम में लिखी गई होंगी। उपर्युक्त आठ नियुक्तियों की रचना के पश्चात ही सूर्यप्रज्ञप्ति एवं इसिभासियाइं की नियुक्ति की रचना होनी थी। इन दोनों ग्रंथों पर नियुक्तियां लिखी भी गई या नहीं, आज यह निर्णय करना अत्यंत कठिन है, क्योंकि पूर्वोक्त प्रतिज्ञा गाथा के अतिरिक्त [92]

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