Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

View full book text
Previous | Next

Page 86
________________ औपपातिकसूत्र में जो विभिन्न प्रकार के तापसो एवं परिव्राजकों आदि का जो उल्लेख मिलता है, वह महावीर के समकालीन ही है, किन्तु उसमें भी परिव्राजकों की कुछ शाखाएँ परवर्तीकालीन भी हैं। इसी प्रकार चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति में ज्योतिष-ग्रहों की गति सम्बन्धी जिस पद्धति का विवेचन किया गया है वह आर्यभट्ट और वराहमिहिर से बहुत प्राचीन है। उसकी निकटता वेदकालीन ज्योतिष से अधिक हैं / पुन: उसमें नक्षत्र भोजन आदि को लेकर जो मान्यताएँ प्रस्तुत की गई है, उनका भी जैन धर्म के गुप्तकालीन विकसित स्वरूप से विरोध आता है। वे मान्यताएँ भी प्राचीन स्तर के आगमों की मान्यताओं के अधिक निकट हैं। अत: सूर्यप्रज्ञप्ति और चन्द्रप्रज्ञप्ति का काल निश्चित् ही प्राचीन है। आचार्य भद्रबाहु (आर्य भद्र) ने जिन दस नियुक्तियों की रचना करने का निश्चिय प्रकट किया है, उसमें सूर्यप्रज्ञप्ति की नियुक्ति भी हैं। ___ मेरी दृष्टि में नियुक्तियों का रचनाकाल ईसा की दूसरी शताब्दी से परवर्ती नहीं है, अतः सूर्यप्रज्ञप्ति का अस्तित्व उससे तो प्राचीन ही सिद्ध होता है। इसी क्रम में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति को भी बहुत अधिक परवर्तीकालीन नहीं माना जा सकता है। इसी क्रम में निरयावलिका के अन्तभूत पाँच ग्रन्थों का रचनाकाल भी ईसा पूर्व की दूसरी-तीसरी शताब्दी से परवर्ती नहीं है, इसी प्रकार उपांग साहित्य में उल्लेखित कोई भी ग्रन्थ ईसा की प्रथम-द्वितीय शताब्दी से परवर्ती सिद्ध नही होता है। उपांग साहित्य में प्रज्ञापना जैसे गंभीर ग्रन्थ में भी लगभग चौथी-पांचवी शती में विकसित गुणस्थान सिद्धान्त का उल्लेख नहीं होना भी यही सिद्ध करता है कि उपांग सहित्य ईसा की प्रथम-द्वितीय शताब्दी से पूर्व की रचना है। अंगबाह्म ग्रन्थों के रचियता पूर्वधर आचार्य माने जाते हैं। पूर्वधरों का अन्तिम काल भी ईसा की दूसरी-तीसरी शताब्दी से परवर्ती नहीं है अतः इस दृष्टि से भी उपांग साहित्य को ईसा की प्रथम-द्वितीय शताब्दी से पूर्व की रचना मानना होगा। उपांग साहित्य की विषय-वस्तु उपांग साहित्य में प्रज्ञापना तथा जीवाजीवाभिगम और चंद्रप्रज्ञप्ति तथा सूर्यप्रज्ञप्ति के अतिरिक्त शेष सभी ग्रन्थ कथापरक ही है। जहाँ जीवाजीवाभिगम और प्रज्ञापना की विषय वस्तु दार्शनिक है, वहीं चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति का सम्बन्ध [82]

Loading...

Page Navigation
1 ... 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150