Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 79
________________ प्रकीर्णकों में ज्योतिष्करण्डक नामक प्रकीर्णक का भी महत्वपूर्ण स्थान है। इसमें श्रमण गन्धहस्ती और प्रतिहस्ती का उल्लेख मिलता है। इसमें यह भी कहा गया है कि जिस विषय का सूर्यप्रज्ञप्ति में विस्तार से विवेचन है, उसी को संक्षेप में यहां दिया गया है। ताप्तर्य यह है कि यह प्रकीर्णक सूर्यप्रज्ञप्ति के आधार पर निर्मित किया गया है। इसमें कर्ता के रूप में पादलिप्ताचार्य का भी स्पष्ट उल्लेख हुआ है। पादलिप्ताचार्य का उल्लेख नियुक्ति साहित्य में भी उपलब्ध होता है (लगभग ईसा की प्रथमशती)। इससे यही फलित होता है कि ज्योतिष्करण्डक का रचनाकाल भी ई. सन् की प्रथमशती है। अंगबाह्य आगमों में सूर्यप्रज्ञप्ति, जिसके आधार पर इस ग्रंथ की रचना हुई, एक प्राचीन ग्रंथ है क्योंकि इसमें जो ज्योतिष सम्बंधी विवरण है, वह ईस्वी पूर्व के हैं, उसके आधार पर भी इसकी प्राचीनता सिद्ध होती है। साथ ही इसकी भाषा में अर्धमागधी रूपों की प्रचुरताभी इसे प्राचीन ग्रंथ सिद्ध करती है। अतः प्रकीर्णकों के रचनाकाल की पूर्व सीमा ई.पू. चतुर्थ-तृतीय शती से प्रारम्भ होती है। परवर्ती कुछ प्रकीर्णक जैसे कुशलानुबंधि अध्ययन, चतुःशरण भक्त परिज्ञा आदि वीरभद्र की रचना माने जाते हैं, वे निश्चित ही ईसा की दसवीं शती की रचनाएं हैं। इस प्रकार प्रकीर्णक साहित्य का रचनाकाल ई.पू. चतुर्थ शती से प्रारम्भ होकर ईसा की दसवीं शती तक अर्थात लगभग पंद्रह सौ वर्षों की सुदीर्घ अवधि तक व्याप्त है। प्रकीर्णकों के रचयिता .. : प्रकीर्णक साहित्य के रचनाकाल के सम्बंध में विचार करते हुए हमने यह पाया है कि अधिकांश प्रकीर्णक ग्रंथों के रचयिता के संदर्भ में कहीं कोई उल्लेख नहीं है। प्राचीन स्तर के प्रकीर्णकों में ऋषिभाषित, चंद्रवेध्यक, आतुरप्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान, मरणसमाधि, गणिविद्या संस्तारक आदि में लेखक के नाम का कहीं भी निर्देश नहीं है। मात्र देवेंद्रस्तव और ज्योतिष्करण्डक दोनों ही प्राचीन प्रकीर्णक ऐसे हैं, जिनकी अंतिम गाथाओं में स्पष्ट रूप से लेखक के नामों का उल्लेख हुआ है। देवेन्द्रस्तव के कर्ता के रूप में ऋषिपालित और ज्योतिष्कंरण्डक के कर्ता के रूप में पादलिप्ताचार्य के नामों का उल्लेख कल्पसूत्र स्थविरावली में महावीर की पट्टपरम्परा में तेरहवें स्थान पर आता है और इस आधार पर वे ई.पू. प्रथम शताब्दी के लगभग के सिद्ध होते हैं। कल्पसूत्र स्थविरावली में इनके द्वारा कोटिकगण की ऋषिषालित शाखा प्रारम्भ हुई, ऐसा भी उल्लेख है। इस संदर्भ में आगे विस्तार से चर्चा हमनें देवेंद्रस्तव प्रकीर्णक की भूमिका में की है।" देवेंद्रस्तव के कर्ता ऋषिपालित का समय लगभग ई. पू. प्रथम शताब्दी है। इस तथ्य की पुष्टि श्री ललित कुमार ने अपने एक शोधलेख में की है, जिसका निर्देश भी हम पूर्व में कर चुके हैं। ज्योतिष्करण्डक के कर्ता पादलिप्ताचार्य का उल्लेख [75]

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