Book Title: Prakrit Kathasangraha Author(s): Jinvijay Publisher: Gujarat Puratattva Mandir Ahmedabad View full book textPage 3
________________ प्रास्ताविक नोंध गुजरात विद्यापीठ द्वारा प्रस्थापित आर्यविद्यामन्दिरना अभ्यासक्रममा संस्कृत साथे पाली अने प्राकृत भाषाना सामान्य अभ्यासने पण आवश्यकीय स्थान आपवामां आवेलुं होवाथी, ए मन्दिरना विद्यार्थियोने प्रथम वार्षिक अध्ययनमां प्राकृत भाषानो साधारण परिचय कराववामाटे आ 'प्राकृत कथासंग्रह' तैयार करवामां आव्यो छे. ___ अहिं प्राकृत भाषाथी ते भाषा समजवानी छे, जेने भाषाशास्त्रियो । महाराष्ट्री प्राकृत ' कहे छे. अने जेमां मोटे भागे जैनधर्मनुं प्राचीन साहित्य ग्रथित थएलु होई, जेनुं संपूर्ण व्याकरण गुजरातना प्रसिद्ध जैन विद्वान् आचार्य श्रीहेमचन्द्रे पोताना सिद्धहेमशब्दानुशासन नामना व्याकरण ग्रन्थना अष्टम अध्यायना प्रारंभम आपेलं छे. ___ आ संग्रहमां आवेली कथाओ मूळ उत्तराध्ययन नामक जैनसूत्रनी देवेन्द्रगणी ऊर्फ नेमिचंद्र सूरिकृत टीकामां आवेली छे. ए टीकाकार विद्वान् विक्रमनी १२ मी शताब्दिमां थई गया छे. तेमणे ए टीकानी रचना गुजरातनी गौरवशाली राजधानी अणहिलपुर पाटणमां करेली छे. * आ कथाओमांनी १ ली कथा जर्मनीना विद्वान डॉ. फिके Eine Jainistische Bearbeitung der Sagar-Sage HTHAT निबन्धमां आपेली छे, अने बाकीनी कथाओ तेज देशना प्रसिद्ध पण्डित डॉ. हर्मन जेकोबीए खास प्राकृत भाषाना अभ्यास माटे ज तैयार करेला Ausgewahlte Erzahlungen in Maharashtre : Zur Einfuhrung in Das Studium Des Pràkrit 5 7741 पुस्तकमा छपावेली छे. -मुनि जिनविजय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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