________________ छोड़कर नौ रसों-दूध, दही, मक्खन, घी, तेल, गुड़, मद्य और मांस का भक्षण नहीं करते थे (38) / (ब) वानप्रस्थीतापस होत्तिय : अग्निहोत्र करने वाले। पोत्तिय : वस्त्रधारी। कोत्तिय : भूमि पर सोने वाले। जण्णई : यज्ञ करने वाले। सडई : श्रद्धाशील। थालई : सब सामान या थाली आदि लेकर चलने वाले। हुबउट्ट : कुण्डी लेकर चलने वाले। दंतुक्खलिय : दांतों से चबाकर खाने वाले। उम्मजक : उम्मजन मात्र से डुबकी लगाकर स्नान करने वाले। सम्मजक : अनेक बार स्नान करने वाले। निमजक : जल में निमग्न या डूब रहने वाले। संपक्खाल : शरीर पर मिट्टी लगाकर स्नान करने वाले या मात्र शरीर का प्रक्षालन करने वाले। दक्खिणकूलग : गंगा के दक्षिण तट पर रहने वाले। उत्तरकूलग : गंगा के उत्तर तट पर रहने वाले। संखधमक : शंख बजाकर भोजन करने वाले। कूलधमक : नदी के किनारे पर खड़े होकर आवाज करके भोजन करने वाले। मियलुद्धय : पशुओं का मांस, पशुभक्षण करने वाले। हत्थितावस : जो हाथी को मारकर उसका मांस सुखाकर उसका ही बहुत काल तक भक्षण करने वाले। इन तपस्वियों का कहना था कि वे एक हाथी को एक वर्ष में मारकर केवल एक ही पाप का संचय करते हैं और इस तरह अल्प हिंसा करते हैं, सूत्रकृतांग में भी इनका उल्लेख है। उड्डंडक : जो दण्ड को ऊपर करके चलते थे। दिसापोक्खी : जो जल द्वारा दिशाओं को सिंचित् कर पुष्प, फल आदि बटोरते हों। वक्कवासी : वक्कल के वस्त्र पहनने वाले। .