Book Title: Prakrit Agam evam Jain Granth Sambandhit Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 210
________________ का आधार हैं और इनका प्रथम निर्देश भी अंगविजा में मिलता है। साथ ही ये नमस्कारमंत्र के ही विकसित स्वरूप हैं। इसकी विस्तृत चर्चा आगे किसी शोध लेख में करेंगे। वस्तुतः मुनि श्री पुण्यविजय जी ने अंगविजा को सम्पादित एवं प्रकाशित करके ऐसा महान उपकार किया है कि केवल इस पर सैकड़ों शोध लेख और बीसों शोध-प्रबंध लिखे जा सकते हैं। विद्वत वर्ग इस सामग्री का उपयोग करें, यही मुनि श्री के प्रति उनकी सर्वोत्तम श्रद्धांजलि होगी। संदर्भ - 1. सामायिक सूत्र (कायोत्सर्ग-आगार सूत्र-४) महानिशीथ, (श्रीआगमसुधासिन्धुः-दशमो विभागः) संपा. श्री विजय जिनेंद्र सूरीश्वर, श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रंथमाला ग्रंथांक७७, लाखा बावल, शांतिपुरी सौराष्ट्र, 1/1) तिथ्त्यर गुणाणमणंत भागमलमंतमन्नत्थ, वही-३/२५ सिद्धाणं णमो किच्चा, उत्तराध्ययनसूत्र, (नवसुत्ताणि) जैन विश्वभारती, लाडनूं, 20/1 . आवश्यक नियुक्ति, हर्षपुष्पामृत जैन ग्रं.मा., लाखाबावल, सौराष्ट्र-१११० अंगविजा- 1/10-11, पृ.१ & in x i w

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