Book Title: Prakrit Agam evam Jain Granth Sambandhit Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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________________ शतवादिका)), गोम्ही (कानखजूरा), हथिसौंड' (28) / . चतुरिन्द्रय जीव-अंधिय, पत्तिय, मच्छिय, मशक (मच्छर), कीट पतंग, ढंकुण (खटमल), कुक्कड, कुक्कुह, नंदावर्त्त, सिंगिरड (उत्तराध्ययन से भिंगिरीडी), कृष्णपत्र, नीलपत्र, लोहितपत्र, हारिद्रपत्र, शुलपत्र, चित्रपक्ष, विचित्रपक्ष, ओहंजलिय, जलचारिका, गंभीर, णोणिय, तंतव, अच्छिरोड, अक्षिवेध, सारंग, नेउर, दोल, भ्रमर, भरिली, जरूल तोट्ट, बिच्छू, पत्रबिच्छू, छाणबिच्छू, पियंगाल (अथवा सेइंगाल), कणग गोमय-कीड़ा (गोबर के कीड़े)३ (29) / पंचेन्द्रिय जीव चार प्रकार के हैं - नैरयिक, तिर्यच्च, मनुष्य और देव (30) / तिर्यच्च तीन प्रकार के होते हैं - जलचर, थलचर और नभचर (32) / जलचर-मत्स्य, मच्छप, ग्राह, मगर और सुंसमार। मगर-सोहमच्छ (श्लक्ष्णमत्स्य), खबल्लमत्स्य, जुंगमत्स्य, विज्झडिमत्स्य, हलिमत्स्य, मगरिमत्स्य (मगरमच्छ), रोहितमत्स्य, हलीसागर, गागर, वड, वडगर, गब्भय, उसगार, तिमि, तिमिगिल, णक्क (नाकू), तंदुलमत्स्य, कणिकामत्स्य, सालि, स्वस्तिकामत्स्य, लंभनमत्स्य, पताका, पताकातियताका। कच्छपअस्थिकच्छप, मांसकच्छप। ग्राह-दिली, बेढग (वेष्टक), मुद्धय (मूर्धज), पुलक, सीमाकार। मगरी-सोंडमगर, मट्टमगर (33) / थलचर जीव चार प्रकार के होते हैं - एकखुर, दोखुर, गंडीपद और सनखपद (नखयुक्त पैरवाले)। एकखुर-अश्व, अश्वतर (खच्चर), घोड़ा, गर्दभ, गोरक्षर, कंदलग, श्रीकंदलग, आवर्तग। दो खुरवाले-ऊंट, गाय, गवय, रोझ, पसय, महिष, मृग, संवर, वराह, बकरा, भेंड, रूरू, शरभ, चमर, कुरंग, गोकर्ण। गंडीपद-हस्ती, हस्तीपयणग, संकुणहती, खडगी (गेंडे की जाति)। सनखपदसिंह, व्याघ्र, द्वीपी, अच्छ (रीछ), तरक्ष, परस्सर (सरभाः, टीकाकार), गीदड़, बिडाल (बिलाड़ी), कुत्ता, कौलशनक' कोकंतिय (लोमठिकाः, टीकाकार'), ससग (ससा), चित्तग, चिलल्लग (34) / ___ उरपरिसर्प- ये चार प्रकार के हैं - अहि, अजगर, आसालिका, महोरग। अहि दो प्रकार के होते हैं - दर्वीकर (फणधारी सांप) और मुकुली (फणरहित)। दर्वीकर-आशीविष, दृष्टिविष, उग्रविष, भोगविष, त्वचाविष, लालाविष, उच्छ्वासविष, निःश्वासविष, कृष्णसर्प, श्वेतसर्प, काकोदर दग्धपुष्प, कोलाह, (134)

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