Book Title: Prakrit Agam evam Jain Granth Sambandhit Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 183
________________ 8. सूत्रकृती आचारांग 1/2/6/104- परिण्णाय लोग सण्णं सव्वसो सूत्रकृतांग (मधुकर मुनि) 1/1/1/7-8 . वही 11-12 10. उत्तराध्ययनसूत्र ५/७-जणेणसद्धिं होक्खामि वही 5/5-7 जहा य अग्गी अरणी उ सन्तो खीरे घटां तेल्ल महातिलेसु। एमेव जाया! सरीरंसि सत्ता संमुच्छई नासइ नावचिढ़े। .... उत्तराध्ययनसूत्र, 14/18 13. नो इन्दियग्गेज्झां अमुत्तभावा अमुत्तभावा वि य होई निच्चो। .... वही, 14/19 14. सूत्रकृतांग, द्वितीय श्रुतस्कंध, अध्याय 1, सूत्र 648-656 ------------ जैन आगम साहित्य में श्रावस्ती जैन आगमिक साहित्य में श्रावस्ती का उल्लेख आर्यक्षेत्र के जनपद की राजधानी के रूप में किया गया है। भगवतीसूत्र के अनुसार यह नगरी कृतांगला नामक नगर के निकट स्थित थी। इसके समीप अचिरावती नदी बहती थी। श्रावस्ती नगरी के तिन्दुक उद्यान और कौष्ठक वन का उल्लेख हमें जैनागमों में बहुलता से उपलब्ध होता है। स्थानांगसूत्र में इसे भारतवर्ष की दस प्रमुख राजधानियों, यथासाकेत, श्रावस्ती, हस्तिनापुर, काम्पिल्य, मिथिला, कौशाम्बी, वाराणसी और राजगृह में से एक माना गया है। - इस वर्णन से ऐसा लगता है कि स्थानांग के रचनाकाल तक जैन परम्परा . मुख्य रूप से उत्तर भारत के नगरों से ही परिचित थी। श्रावस्ती का दूसरा नाम कुणाला भी था। जैन साहित्य में श्रावस्ती की दूरी साकेत (अयोध्या) से सात योजन (लगभग 90 किमी) बताई गई है। वर्तमान में श्रावस्ती की पहचान बहराइच जिले के सहेट-महेट ग्राम से की जाती है। आधुनिक उल्लेखों के आधार पर यह बात सत्य भी लगती है, क्योंकि साकेत से सहेट-महेट की दूरी लगभग (179)

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