Book Title: Prakrit Agam evam Jain Granth Sambandhit Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 193
________________ भविस्ससि, अंगविजासिद्धी स्वाहा। परिसंखा णेतव्वा, तच्छीसोपरि पुढवीयं ठिती विण्णेया . इस प्रकार, हम देखते हैं कि प्रस्तुत ग्रंथ में अनेक प्रसंगों में विद्या और मंत्र साधना सम्बंधी निर्देश उपस्थित हैं। इसके आधार पर इसे जैन मांत्रिक साधना का प्रारम्भिक ग्रंथ माना जा सकता है। पुनः, इस ग्रंथ की सबसे मुख्य विशेषता यह है कि इसमें जैन धर्म के प्राचीन एवं प्रमुख पंच परमेष्ठी नमस्कार मंत्र के विविध रूप देखने को मिलते हैं, जिसके आधार पर नमस्कार मंत्र की विकास यात्रा को ऐतिहासिक दृष्टि से समझा जा सकता है। उदाहरण के रूप में, इसमें नमस्कार मंत्र के द्विपदात्मक, त्रिपदात्मक और पंचपदात्मक- ऐसे तीन रूप मिलते हैं। द्विपदात्मक मंत्र - नमो अरहंताणं, नमो सव्व सिद्धाणं ... ज्ञातव्य है कि प्राचीनतम जैन अभिलेखों में खारवेल का हत्थीगुफा अभिलेख, जो लगभग ईसा पूर्व दूसरी शती का है, उसमें 'नमो अरहंतानं, नमो सव्व सिद्धानं'- ऐसा द्विपदात्मक नमस्कार मंत्र मिलता है, किंतु आज तक उसका कोई साहित्यिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं था। उसके साहित्यिक साक्ष्य के रूप में हमें अंगविजा में सर्वप्रथम यह द्विपदात्मक नमस्कार मंत्र मिला है। इसकी विशेषता यह है कि इसमें सिद्ध पद के पूर्व ‘सव्व' पाठ है और इस पाठ को स्वीकार करने से पांचों पदों में सात-सात अक्षर हो जाते हैं, क्योंकि अंगविजा में त्रिपदात्मक नमस्कार मंत्र में 'नमो सव्व साहूणं' पाठ मिलता है। त्रिपदात्मक नमस्कार मंत्र - नमो अरहंताणं, नमो सव्व सिद्धाणं, नमो सव्व साहूणं यहां एक विशेष बात यह देखने को मिलती है कि नमो सव्वसाहूणं पाठ में 'लोए' पाठ नहीं है, किंतु अंगविजा में दोनों तरह के पाठ मिलते हैं, यथानमो लोए सव्व साहूणं और नमो सव्व साहूणं। इसी प्रकार, इसमें पंचपदात्मक नमस्कार मंत्र भी इस ग्रंथ के मंत्र भाग में उपलब्ध है। पंच पदात्मक नमस्कार मंत्र - नमो अरहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्व साहूणं। . ज्ञातव्य है कि अंगविजा के पंचपदात्मक नमस्कार मंत्र में दूसरे पद के दोनों रूप मिलते हैं- नमो सिद्धाणं और नमो सव्व सिद्धाणं, किंतु हमें इस ग्रंथ में

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