Book Title: Prakrit Agam evam Jain Granth Sambandhit Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

View full book text
Previous | Next

Page 184
________________ उतनी ही है। पुनः, सहेट-महेट का राप्ती नदी के किनारे स्थित होना भी आगमिक तथ्यों की पुष्टि करता है। राप्ती अचिरावती का ही संक्षिप्त और अपभ्रंश रूप है। श्रावस्ती के उत्तर पूर्व में कैकेय जनपद की उपस्थिति मानी गई है और कैकेय जनपद की राजधानी सेयाविया (श्वेताम्बिका) बतलाई गई है। कैकेयी के अर्द्धभाग को ही आर्यक्षेत्र माना जाता था, इसका तात्पर्य यह है कि उस काल में इसके आगे जंगली जातियां निवास करती रही होंगी। . श्रावस्ती को चक्रवर्ती मघवा, राजा जीतशत्रु, पसेनिय (प्रसेनजित्) और रूप्पि की राजधानी बताया गया है। इसके अतिरिक्त, इस नगर को तीर्थंकर सम्भवनाथ का जन्मस्थान और प्रथम पारणे का स्थान भी माना जाता है। ऐतिहासिक दृष्टि से हमें जैन आगम साहित्य में जो प्रमाण मिलते हैं, उसके आधार पर इतना निश्चित है कि यह नगर राजा प्रसेनजित् की राजधानी थी। राजप्रश्नीय के अनुसार प्रसेनजित् को पार्खापत्यीय-श्रमण केशी ने निर्ग्रन्थ परम्परा का अनुयायी बनाया था। राजप्रश्नीय में प्रसेनजित् को आत्मा के अस्तित्व एवं पुनर्जन्म के सम्बंध में अनेक शंकाएं थीं, जिन्हें आर्य केशी ने समाप्त किया था। ज्ञाताधर्मकथा और निरयावलिका के उल्लेख के अनुसार पार्श्व श्रावस्ती गए थे और वहां पर उन्होंने काली, पद्मावती, शिवा, वसुपुत्ता आदि अनेक स्त्रियों को दीक्षित किया था। श्रावस्ती में पार्वापत्यों का प्रभाव था। इस तथ्य की पुष्टि अनेक आगमिक उल्लेखों से होती है। जैन आगम साहित्य में जो उल्लेख पाए जाते हैं, उनसे ऐसा लगता है कि श्रावस्ती परं निर्ग्रन्थों के अतिरिक्त आजीविकों, बौद्धों और हिन्दू परिव्राजकों का भी पर्याप्त प्रभाव था। बौद्ध साहित्य से यह स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है कि बुद्ध इस नगर में अनेक बार आए थे और उन्होंने यहां अपने प्रतिहार्यों का प्रदर्शन भी किया था। इससे ऐसा लगता है कि उस युग का श्रावस्ती का जनमानस प्रबुद्ध और उदार था और वह विभिन्न धर्म सम्प्रदाय के लोगों को अपने सिद्धांतों को प्रस्तुत करने का अवसर देता था। जैन परम्परा के लिए तो श्रावस्ती अनेक दृष्टियों से एक महत्त्वपूर्ण नगर सिद्ध होता है। भगवतीसूत्र में प्राप्त सूचना के अनुसार जैनों का प्रथम संघ भेद भी श्रावस्ती में ही हुआ था। महावीर के जामात जामालि ने यहीं पर 'क्रियमाण अकृत' का सिद्धांत स्थापित किया था और महावीर के संघ से अपने 500 शिष्यों के साथ अलग हुए थे। जामालि की मान्यता यह थी कि जो कार्य पूर्णतया (180)

Loading...

Page Navigation
1 ... 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212