Book Title: Pradyumnakumara Cupai Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah Publisher: L D Indology AhmedabadPage 10
________________ भूमिका ३ लखती वखते लहियानी शरतचूकथी पंक्तिमां ज्यां अक्षरो, शब्दो के कडीनो संख्यांक रखवानो रही गयो होय तो ते स्थळे चोकडी के एवं कोई चिह्न मूकी ते ते खूटता अक्षरो, शब्दो के संख्यांको बाजुना हांसियामां, पत्रने मथाळे, अनुकूळता होय तो ज्यां ते खूटता होय त्यां ज अथवा तेनी सहेज आजुबाजुमां समावी लीघा छे. प्रतनी लखावटः -- आखीय कृति जैन पद्धतिनी देवनागरी लिपिमां, पडिमात्रामा लखायेली छे. लखावटनी दृष्टिए प्रतमां नीचेनी महत्त्वनी वस्तुओ ध्यान खेचे छे १. क. हस्तप्रतमां लगभग बधे ठेकाणे 'ख" ने स्थाने "ष" लखवामां आग्यो छे. उदाहरण तरीके - त्रिणिषंड १६ १, संघ ४५, घोडा घुरी षेड़ उछली ६५, ५१३, दुष ११२, परषरं १९७, बजूरी - परणि ३९०, षंडगवन ४९७, आऊषू ६५२, मासषमण ७४९ इत्यादि. ख. केटलेक ठेकाणे "क्ष" नो "ख" करी, "ख" नी जग्याए "" लखवामां आव्यो छे. उदाहरण तरीके - भरहषित ३, कुसलषेम २४, द्राषइ ३९०, पित्री ४९०, दक्षिण ५१४ ३० ग. केटलेक ठेकाणे "ख" नो "ख" पण रह्यो छे. जेम के : कमलशेखर १०६ लाभशे खर ७५८ घ. केटलेक ठेकाणे 'क्ष' नो 'क्ष" पण रह्यो छे. जेम के क्षत्री १५, लक्षण २८, अक्षोहणि ३३०, भिक्षाव्रति ४४१, दक्षण ६१४, वक्षस्थल ६४७, सत्तरभक्ष ६९१. २. क. केटलेक ठेकाणे अनुस्वारो रही गयां छे. जेम के, सेत्रुज ३, सारिगपाणि २१, भूडु ५२, ६६८ नारायणनु रूप ५८, नही १४७ इडा १९० - १९१ कुडल २९१, अनगु ३५८, सदेह (संदेह ) ३५७, माहोमाहि ४८२, शाबकुमर ६५४, आनद ६९६, संबधि ७०३ इत्यादि. ख. केटलेक ठेकाणे अनपेक्षित अनुस्वारो मूक्यां छे. जेमके सोरठ देंस । रीस २९, कुमारं १४१, कुंरब ( कोरव) १२१, कोंधां २१०, आंपणी ३०४, घंटं ३४३, अंगनि ४३२, देषांडु ५२३ इत्यादि. ग. लगभग सर्व ठेकाणे "न" 'ण' अने "म" नी पूर्वना स्वर ऊपर अनुस्वार मूकवामां आव्यो छे. ज़ेम के: विमांनि २०, स्वांमी ६७, कांणि १२०, आंनंदि १४२, नांम १५८, राणी १८३, मांणस ३२१, धूमकेतु ४४४, बांण ५४९, मैन ७५९ इत्यादि... ३. "ह" स्वरसहित जुदो मळे छे. जेम के: तेहनई ३९, एहनु ५०, जेहवी तेहवी ११०, नहुँतरी १८२, नान्डु २२९, छेहडउ २९५, चूल्हउ ४३३, न्हासइ ५५७, उल्हाणी ५५९. पल्हाणाइ ६८२, केहना ७४५ इत्यादि. ४. “ळ" नो उपयोग क्यांय नथी कर्यो. जेम केः रलियामणु १, थाल ५७, शीतल ७८, बालक १४२, जाल २७९, माली (माळी) ३९३, गलई (गळा उपर) ६८७ इत्यादि. ५.. " ज्ञ" ने बदले "न्य" वापर्यो छे. जेम के: न्यान ५, आन्या ४१, न्यानी १७६ ६. स,श,ष, के श्र नी बाबतमां मोटे भागे अराजकता प्रवर्ते छे. जेम के : सोभती ८, शिशुपाल ६९, स्वेत ९६, सूर (शूरा) २३३, जोस (ज्योतिष) ४९९, सूर्पणखा ( शूर्पणखा ) ३२९, जिनेस्वर ७२४ इत्यादि. १. कडीओनो संख्यांक में संपादन करेला पाठ प्रमाणे मूकेलो छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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