Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 05
Author(s): Tribhuvandas Laherchand Shah
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 12
________________ प्रा. जै० इ० दूसरा भाग उस अर्थ में नहीं ) ईस्त्री पूर्व ५२६ में हुआ है। यहाँ पर मुझे यह भी बतला देना आवश्यक है कि जिन विद्वानों को उक्त साल मान्य नहीं है, उन्होंने अपनी गणना से सेण्ड्रोकोटम चन्द्रगुप्त ही था, और वही बादशाह सिकन्दर की छावनी में ई० पू० ३२७ में मिला था, इस बात को मान कर ही आगे बढ़ने का प्रयास किया है, किन्तु हम पहले देख चुके हैं कि यह गणना भ्रम पूर्ण है फिर जिसकी नींव कमजोर होती है वह मकान भी कमजोर होता है यह भी सिद्ध ही है। (१) (अ) देखिये हेमचन्द्र सूरी का परिशिष्ट पर्व, ( ब ) (सेक्रेड ) बुक्ल श्राफ दी इस्ट नामक ग्रन्थ माला के क्रमाङ्क अंक २२ में प्रो. जैकोबी की टिप्पणी, जिसमें उन्होंने लिखा कि श्वेताम्बर तथा दिगम्बर दोनों सम्प्रदाय के जैनों के दोनों विभागों वाले महावीर भगवान् का निर्वाण समय (ई० पू० ५२६) के बारे में तो एक ही मत है (स) मिसेज़ स्टीवेन्सन नामक लेखिका के “ हार्टॉफ जैनिज़्म " नामक पुस्तक की प्रस्तावना प्र. XIV, (द) सर कनिंगहम की "बुक ऑफ इण्डियन इरोज" नामक पुस्तक का प्र०३७ (वि० सं० पूर्व ४७० वर्ष में वीर निर्वाण हुअा था),(य) सर स्टीवेन्सन कृत "कल्प सूत्र" प्रस्तावना VIII और टीका प्र.६६, (फ ) मेरुतगाचार्य की स्थवि. रावली, डा० भाऊजी दा जी की बनाई हुई (ज. रो० ए० सो० बो. पुस्तक ६ प्र. १४६ ) (ग़) कर्नल माइल्स (टा० रो० ए० सो० बो० तृतीय भाग प्र० ३५८ ) (ज) प्रो० काण्टियर (ई. ए० पु० ४३, १६१४ प्र. १३२) । चाहे जो कुछ हो किन्तु ईसा पूर्व ५२७ का साल दन्त कथा के रुप मेंही भले ही अबतक चलता अाया है और ई० पूर्व ४७७ के साल को केवल गणित का हिसाब लगाकर खड़ा किया गया है और इस कारण उसके संम्बन्ध की शेष बातें भी अप्रामाणिक निकले यह बहुत संम्भव है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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