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महाराजा सम्प्रति के शिलालेख
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डा० वीन्सेंट स्मिथ इस अभाव का कारण ४ यह बतलाते हैं कि ये पुस्तकें ई० की पाँचवीं और छठी शताब्दी में लिखी गई हैं, या तो इस कारण से इनके लेखक उन्हें भूल गए, या उन देशों के नामों का तात्कालिक नामों से पता न लगने के कारण ( इस बीच में लगभग ८०० वर्ष का समय बीत चुका था इससे ) - उन का निर्देश इन पुस्तकों में नहीं किया गया है ।
क्या यह बात मानी जा सके ऐसी है ? कि बौद्ध लोग जो जैन धर्म वालों को अपने से पाखण्ड मत के माने और वे अपने धर्म के प्रधान मान्य ग्रन्थों दीपवंश और महावंश जैसे ग्रन्थों में लेखक, यह लिखना ही भूल जायँ कि जिस बात के द्वारा संसार के जानने से उनके धर्म के गौरव की विशेष वृद्धि होती हो, यह बात कठिन है। असल में बात तो यह है कि मौर्य वंशीय राजाओं में केवल अशोक ही बौद्ध धर्मी था और उसने इन प्रान्तों में न तो कभी कोई धर्मोपदेशक भेजा इनसे सम्बन्ध ही था ।
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और न उसका
( ८४ ) इण्डियन एण्टीक्क ेरी पु० ३४ पृ० १८३ ।
(८५) ( देखिये इण्डियन एण्टीक्वेरी पु० ३४ पृ० १८१ ) इति - हास के प्रमाण देखते हुए तो ( यहाँ सारे प्रान्तों का विभाग करके नाम किया है ) दक्षिण हिन्द के स्वतन्त्र राज्य जैसे चोल, पांड्या, सत्यपुत्र तथा केरल पुत्र तथा पांच भवन राज्य ( शिला लेखोंके ) किसी का भी पता नहीं लगता ।
इतना बतला देना बड़ा ही आवश्यक है कि आज का देश सुधारा हुआ तथा संस्कृत प्रदेश ( श्रार्यदेश ) वर्ना ई० की तीसरी चौथो शताब्दी तक विध्याचल के
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कल ही दक्षिण
गिना जाता है, दक्षिण के सारे
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