Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 05
Author(s): Tribhuvandas Laherchand Shah
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 80
________________ ७४ प्रा० जै० इ० दूसरा भाग ई० पू० ३३० में ही गद्दी पर बैठा था।४२ अतएव इस हिसाब से उसका छब्बीसवाँ वर्ष ३३०-२६= ई० पू० ३०४ होता है तथा यवनकुमारी से विवाह करने की बात का आशय यह है कि सन्धि-पत्र की शर्त के अनुसार सेल्युकस ने अपनी पुत्री हेलेना का विवाह सम्राट अशोक के साथ किया था। इससे भी यही निर्विवाद सिद्ध होता है कि सेंड्र कोट्स चन्द्रगुप्त नहीं वरन् अशोक ही था। (११) अब तक जितने भी स्तंभलेख उपलब्ध हुए हैं और जिन्हें ऐतिहासिकों एवं पुरातत्त्ववेत्ताओं ने सम्राट अशोक को बौद्धधर्म निरूपणकर्ता बतलाया है, उन प्रत्येक के सिरे पर जो सिंह बन हुआ है उसका आशय क्या होना चाहिए ? क्या भगवान् के खुद के अथवा उनके धर्म के किसी सिद्धान्त के साथ इस सिंह की आकृति का कोई संबंध बतलाया जा सकता है ? नहीं उसके बदले जैनधर्म के कुछ सिद्धान्तों की गहराई के साथ, छानबीन की जाय तो उनमें सिंह एक श्रेष्ठ प्राणी सिद्ध होगा। इसी प्रकार कितने ही जिनालयों४ 3 पर मांगलिक चिह्न के रूप में सिंह की ही आकृति बनाई देखने में आती है। इतना ही नहीं वरन् यह एक विश्वविख्यात वार्ता है कि जिन भगवान् महावीर के प्ररूपित जैनधर्म का सम्राट् प्रियदर्शिन् परम भक्त था उन (४२) सम्राट अशोक विषयक कालनिर्णय के निष्कर्ष 'अ' तथा पैराग्राफ नं. ४-५-६ और उनकी टीकाएँ । (४३) नारदपुरी श्रादि कई नगरों के मंदिर सम्राट् संप्रति केही बनवाए हुए हैं, जो आज भी उनके कीर्तिगान द्वारा संसार को आश्चर्य में डाल देते हैं । उन पर भी अनेक सिंह की श्राकृतियाँ बनी हुई देखी जाती हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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