Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 05
Author(s): Tribhuvandas Laherchand Shah
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 69
________________ महाराज सम्प्रति के शिलालेख जानता था कि कहाँ सार्वभौम भारतीय मौर्यवंशी सम्राट और कहाँ वह केवल पश्चिम भारत के एक छोटे से भाग का राजा। दोनों की तुलना हो ही कैसे सकती है ? इस बात की विशेष पुष्टि इससे हो सकती है, कि वह तालाब उस समय श्री गिरनारजी की तलहटी में खुदवाया गया था और शिलालेख भी वहीं लगाया गया था जहाँ कि उस तालाब के स्मरण चिह्न रूप उसकी पाल (दीवार ) का कुछ भाग और उसमें मिलनेवाली दो नदियों के प्रवाह मार्ग रूप कगारे हमें आज भी दृष्टिगोचर होते हैं। सारांश यह कि उस समय श्री गिरनारजी की तलहटी वहीं तक फैली हुई थी जहाँ कि आज उक्त शिलालेख मिलता है। (२) उसी नवीं पंक्ति में यह भी लिखा हुआ है कि "युद्ध के अतिरिक्त प्राणान्त तक'3 भी मनुष्य-वध न करने की उसने प्रतिज्ञा की थी।" (१०) राजा प्रियदर्शिन् ने शिलालेख क्यों खुदवाए यह जानने के लिये महोदय व्यास कृत सम्राट प्रियदर्शिन् की जीवनी नाम की पुस्तक देखिए। (११) लेख में उन दोनों के नाम सुवर्ण सिकता और परमाशिनी लिखे गए हैं, जिनका अपभ्रंश होकर आज वे सोनरख और पलासिसो के नाम से पहचाने जाते हैं। (१२) वह स्वयं राजा होने के कारण इस बात को जानता था कि मुझे युद्धभूमि में उतरना ही पड़ेगा; इसी लिये उसने इस प्रकार के श्रागार-अपवाद के साथ व्रत धारण किये होंगे। अथवा कलिङ्ग देश जीतने के बाद उसने जो आठ व्रत लिये (नीचे की टीका १३ देखिए) वे इसकी याद दिलाते हैं। - (१३) टिप्पणी नं० ११ तथा अहिंसा का शिलालेख नं. १ मिलान कीजिए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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