Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 05
Author(s): Tribhuvandas Laherchand Shah
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 76
________________ ७० प्रा० जै० इ० दूसरा भाग इसे बड़ी सभ्य और शिष्ट भाषा में बतलाया अवश्य है; किन्तु उसकी राजनीति में कहीं भी उक्त पंथ-बौद्धमत-के सूत्रानुसार आचरण होता दिखाई नहीं देता । इन शब्दों से स्पष्ट अनुमान किया जा सकता है कि शिलालेखों का निर्माता बौद्धधर्मी कदापि नहीं हो सकता। (४) यह निष्कर्ष निकलता है कि3१ फाहियान और युआनच्चांग नाम के जो दो चीनी-यात्री भारतवर्ष में आए थे, उनके किए हुए वर्णनों में इन शिलालेखों की चर्चा अवश्य है, किन्तु फिर भी यह कहीं भी नहीं लिखा गया है कि ये शिलालेख अशोक के खुदवाए हुए हैं। केवल इतनी बात उन्होंने अवश्य लिखी है कि ये लेख प्राचीन हैं और इनमें लिखी हुई बातें इनसे पहले की हैं। ऐसी दशा में बौद्ध-धर्मी यात्रियों से यह बात अविदित हो सकती है कि "उन्हीं के स्वधर्मी सम्राट अशोक के खुदवाए हुए ये सब शिलालेख हैं।" इन शब्दों से भी भली भाँति सिद्ध होता है कि इन शिलालेखों से सम्राट अशोक का कोई सन्बन्ध नहीं हो सकता। (39) Radha Kumood Moookerjee, p. 14 f. n. 3, It should be noted that neither of these Chinese pilgrims (Fe-hian and Youan chwang) has described the inscriptions they had noticed as the inscriptions of Asoka. Thay generally describe them as belonging to and recording events of earlier times. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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