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प्रा० जै० इ० दूसरा भाग
हाथी ९४ भी किया जाता है। (प्रो० फेर्ज साहब का मत और) इसका तात्पर्य यह बतलाता है कि जब भगवान बुद्ध९५ स्वर्ग से च्युत होकर अपनी माता के उदर-गर्भ में आए तब स्वप्न में उनकी माता ने सफेद हाथी को अपने मुख में प्रवेश करते हुए देखा था। (प्रो० फेज साहब इस प्रसङ्ग को बुद्ध भगवान् के सम्बन्ध
होने पर भी दिगम्बर मत के कहे जा सकते हैं। किन्तु खास दिगम्बर मत तो उनके कई वर्ष बाद स्थापित हुआ है; पर प्रारम्भ उनके समय से ही माना जा सकता है, जब कि आर्य सुहस्ति जी समय के अनुसार रूढ़ि को बदल देनेवालों में से होने के कारण श्वेताम्बर स्थिति में ही रहे और संप्रति राजा स्वतः भी इन्हें गुरु मानते थे ।
(६४) जैन पुस्तकें बतलाती हैं कि ( कल्पसूत्र, सुग्वबोधिनी टीका, पृष्ट ५८ ) जब किसी तीर्थङ्कर का जीव माता के उदर में गर्भ रूप में श्राता है तब वह चौदह स्वप्न देखती है। चक्रवर्ती की माता भी चौदह, वासुदेव की माता सात और बलदेव की माता चार तथा प्रति वासुदेव की माता भी चार एवं किसी बड़े मांडलिक की माता एक स्वप्न देखती है। (इन चौदह में से ऊपर की किसी भी संख्या में स्वप्न देखे, क्रमबद्ध संख्याओं में ही स्वप्न देखने की कोई बात नहीं है )[ इसी लेख की पादटीका नं० २ देखिए ।
(६५) अधिक संभव तो यह जान पड़ता है कि राजा संप्रति जब अपनी माता के गर्भ में पाए होंगे तब 'श्वेत हस्तिन्' को अाकाश से उतरकर अपने मुख द्वारा शरीर में प्रविष्ट होते हुए उसने देखा होगा; इसी से उसने यह सूचित किया होगा कि आगे चलकर यह जीव कैसा निकलेगा। और जब उसका यथार्थ प्रभाव विदित हुआ तब राजा संप्रति ने शिलालेखों में 'हस्तिन्' की प्राकृति को पहचाना हो। [ इसी लेख की पाददीका नं० १ देखिए।]
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