Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 05
Author(s): Tribhuvandas Laherchand Shah
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 46
________________ : प्रा० जै० ई० दूसरा भाग ठाले बैठकर लोग दुर्गुणों में प्रवृत्त होने से बचें और दूसरा प्रधान हेतु यह कि अपने धर्म के विषय में लोगों में श्रद्धा उत्पन्न हो। - (२०) स्तंभलेख नं०५ में पक्षियों के वध, जलचर प्राणियों के शिकार तथा गोधाओं को खस्सी करने आदि अनेक प्रकार की हिंसा के लिये निषेध करनेवाले जिन छप्पन दिनों१०० की गणना कराई गई है ( जैसे कि चातुर्मासि पोसह ०१ श्रादि) वे सब जैन धर्म का ही महत्त्व सूचित करने वाले हैं। क्योंकि जैन धर्म में अष्टमी तथा चतुर्दशी का जैसा माहात्म्य माना जाता है, वैसा न तो बौद्ध धर्म में है और न ब्राह्मण धर्म में १०२ । इसी प्रकार बारह महीने की तीन ऋतुओं के अन्त में आठ-आठ दिन की अट्ठाई, जिसे चातुर्मास कहा जाता है (जिस प्रकार कि कातिक चोमासा, फाल्गुन चौमासा और आषाढ़ चौमासा), पूर्णतः प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त आयंबिल को दो पंक्तियाँ (१००) सम्राट अकबर और हीरविजय सूरि नामक ग्रन्थ में जिन दिनों में हिंसा न करने विषयक फर्मान सूरि महाराज ने सम्राट अकबर से प्राप्त किया था, उन दिनों के साथ मिलान कीजिए ( शाही फर्मान छः प्राप्त किए हैं वे ) तथा वैराट नगर के पार्श्वनाथ मंदिर में के शिलालेख में १०६ दिन (श्राँ. लाँ. सर्वे, वेस्टर्न सर्कल, कनिंगहम् ) २६१०; प्राचीन जैन लेख-संग्रह भाग दूसरा खण्ड तीसरा, नं० ३७६ । (१०१) देखिए शिलालेख नं० २। - (१०२) मेरी समझ से ब्राह्मण धर्म में चतुर्दर्शी की अपेक्षा एकादशी का माहात्म्य ही विशेष माना जाता है। बौद्ध धर्म में कौन सी तिथि है, यह मैं नहीं जानता। किन्तु यह तो निश्चित ही है कि जैनधर्म की मान्यता से वह सर्वथा भिश ही होगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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