Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 05
Author(s): Tribhuvandas Laherchand Shah
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 41
________________ महाराज सम्प्रति के शिलालेख ३५ (इ) पाखण्ड (शिलालेख नं० १३)-प्रो० एच० एच० विल्सन साहब जोर देकर बतलाते हैं कि यह शब्द बौद्ध धर्म का हो ही नहीं सकता। (क) 'श्वेत' (शिलालेख नं० १३) शब्द भी जैन संप्रदाय का है। यदि इसका अर्थ 'श्वेताम्बर संप्रदाय' किया जाय तो राजा संप्रति उर्फ प्रियदर्शिन के गुरु आर्य सुहस्ति९१ के समय में जैन धर्म के दो मुख्य विभाग करने की तैयारी हो रही थी-उन दोनों के नाम९२ आजकल विख्यात ही हैं'श्वेताम्बर और दिगंबर'। इनमें भी संप्रति राजा श्वेतांबर पन्थ के अनुयायी थे । अथवा दूसरा अर्थ श्वेत= सफेद को संघ के अंगभूत नहीं माना गया, इसी से) खासकर बौद्ध धर्म की अवनति होने की बात डा. बरजेस और डा. फग्र्युसन साहब भी मानते हैं। (१०) ज० रा० ए० सो०, पु. १२ पृष्ठ २३६ । (११) भगवान महावीर के दशम पट्ट (पीढ़ी) में ये सूरिजी हुए हैं। इनका सूरि पद महावीर संवत् २१७ से २६२ तक था। इनके बड़े भाई (गृहस्थावस्था एवं दीक्षा में) आर्य महागिरिजी के म. सं० २४६ में स्वर्गवासी होने पर संघ का भार इन्हीं को बहन करना पड़ा था। (१२) श्वेताम्बर अर्थात् सफेद कपड़े पहननेवाले और दिगम्बर (दिदिशा रूपी कपड़े धारण करनेवाले अर्थात् जो नग्नावस्था में रहते हैं)। (६३) आर्य महागिरि जी बड़े थे और प्रार्य सुहस्ती सूरिजी छोटे । महागिरि जी स्वयं जिन कल्पित प्राचार का पालन कराने के हिमायती Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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