Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 05
Author(s): Tribhuvandas Laherchand Shah
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

View full book text
Previous | Next

Page 29
________________ • महाराजा सम्प्रति के शिलालेख सम्राट सम्प्रति का स्थान सर्वोत्कृष्ट है और जैन उनके अत्यन्त ऋणी हैं; इतना होते हुए भी प्रो० जैकसी को कहना पड़ता है (गोया कि सम्प्रति के बारे में बहुत सी ते पद चुके हैं) कि सम्प्रति तो एक काल्पनिक पुरुष है। ऐसा हने का कारण क्या है ? मेरे मतानुसार तो जिस तरह सर कनिगराप्रपना मन प्रगट५८ किया है कि चन्द्रगुप्त के राज्य का प्रारम्भ कालगलखने में ६० वर्ष की भूल हुई मालूम होती है, वही कारण यहाँ भी गड़बड़ी डालने वाला हो गया है। प्रो० जे० एल० काण्टियर५९ ने लिखा है कि "पौराणिक तथा जैन ग्रन्थों में नवें नन्द का जो वर्णन मिलता है वह किसी भी तरह उन्हीं राजाओं के डिओडोरन सिक्युल्स तथा कीन्टकर्टीअर्स के दिये हए वर्णन से नहीं मिलता, उसका वर्णन जिसे उन्होंने जब सिकन्दर ने भारत पर चढ़ाई की थी, पाटलीपुत्र की गद्दी पर था तथा जिसका ग्रोक लेखकों का लिखा हुआ सेण्डोकोट्स ( चन्द्रगुप्त ) पुरोगामी था, बतलाया है। ___ इन सब बातों से यह तो भली प्रकार सिद्ध हो जाता है कि सेण्डोकोट्स चन्द्रगुप्त नहीं था प्रत्युत अशोक था। अब लेख के तीसरे खंड पर चलते हैं जो अगले दोनों विभागों की अपेक्षा अधिक रसप्रद है। "विभाग तीसरा" स्तम्भ लेखों में लिखे हुए प्रत्येक प्रत्येक वाक्य तथा शब्द उनकी रचना और अशोक के जीवन काल के वृत्तान्तों की गूढ़ (५८) देखिए परिशिष्ट पर्व और इनसाइक्लोपीडिया श्राफ रिली. जियन्स एण्ड एथिक्स नामक पुस्तक के जैन शब्द का सारा वर्णन । .. (५६) कारपस इन्सक्रीप्शन्स इन्डकैरम प्रीनस VI । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82