Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 05
Author(s): Tribhuvandas Laherchand Shah
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 11
________________ महाराज सम्प्रति के शिलालेख निर्णय कर लेंगे कि सेण्डोकोट्स कौन है । मोर्य वंश की वंशावली लिखने के पूर्व सब से पहले अपने लिए वौद्ध संम्वत् की सहायता आवश्यक है। तात्पर्य यह कि सारे विषय को व्यवस्थित रखने के लिए इस लेख को मुझे तीन भागों में बाँट देना पड़ेगा । पहला बौद्ध संवत् निर्णीत करके बतलाना, दूसरा मौर्यवंश की वंशावली बतलाना और तीसरा अन्तिम और सबसे उपयोगी भाग जिसमें सारे शिलालेख और स्तम्भ लेखों में लिखी हुई बातें, उनकी टीका टिप्पणी और विवेचना के साथ आपके सम्मुख रखकर उसका निर्णय स्वयं आपको करने को सौंपना, कि ये सारी कृतियाँ सम्राट अशोक की ही हो सकती हैं, या किसी दूसरे व्यक्ति की ? "विभाग प्रथम" बौद्ध संम्वत् का निश्चय करने के लिए हमें ईस्वी पूर्व ३२७ के साल को मध्य बिन्दु के रूप में मानकर उससे पीछे चलते चलते शोध करना छोड़ देना पड़ेगा, कारण कि उन दोनों घटनाओं के बीच का काल अनेक शंकाओं, दुर्घटनाओं, भूलों तथा त्रुटियों से पूर्ण है। उमके स्थान पर उसी समय दूसरे जो दो धर्म अस्तित्व में थे उनमें से एक (ब्राह्मण धर्म या जैन धर्म में से) जैन धर्भ की जो घटना सिद्ध हो चुकी है; उसी को मध्य बिन्दु के रूप में मान कर आगे बढ़ना सुन्दर होगा । मेरा कहना जैन धर्म के अन्तिम तीर्थकर भगवान् श्री महावीर के निर्वाण से तात्पर्य रखता है। ___ महावीर निर्वाण (मोक्ष प्राप्ति-जिंस भाँति दक्षिण भारत के बौद्ध ग्रन्थों में ज्ञान प्राप्ति को ही निर्वाण कहने में आया है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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