Book Title: Prabhu Veer evam Upsarga
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 18
________________ प्रभूवीर एवं उपसर्ग लिए प्रभु का जीवन एक श्रेष्ठ साधन है। यहाँ हम सभी प्रभु महावीरदेव की छत्रछाया में बैठे हुए हैं और प्रभुवीर के धर्मशासन में साधु-साध्वी, श्रावकश्राविका के रूप में स्थान पाये हैं। इसलिये प्रभु महावीर के चरित्र को पढ़ने का विचार किया है। प्रभुवीर महावीर कैसे हुए उसे जानने के लिए पहले उनके पूर्वभवों को संक्षेप में देखना है।अंतिम भव की थोडी सी बात लेकर संगमदेव के द्वारा एक रात्री में किये गये वीस उपसर्गों का वृत्तान्त मुख्यतया वर्णन करने की इच्छा बतायी है उसे आप सभी जानते ही हैं। सम्यकव की प्राप्ति अनादि-अनंतकाल से अनंतानन्त आत्माएँ कर्म की गुलामी के कारण जन्म-मरणरूप संसार में संसरण( विचरण) कर रही है। उसी तरह श्री तीर्थंकरदेव की आत्माओं को भी कर्मवश ऐसी ही दशा होती है।अनादि निगोद में अनंतपुद्गलपरावर्त जितना सुदीर्घ-गणनातीत काल उस तारकों की आत्माओं ने भी गुजारी है। भवितव्यता के योग से दूसरी आत्माओं की तरहही तारकों की आत्माएँ भी निगोद से बाहर आती है। व्यवहाराशिमें भी दीर्घकाल का परिभ्रमण विषय-कषाय के विपाक रुप में करना पडता है। काल, बल और पुण्य के प्रभाव से सुन्दर सामग्री पाकर भव्यत्व का परिपाक प्राप्त करके उन तारकों की आत्माएँ कर्मलघुता से मिथ्यात्व की मंदता पाती है। जिसमें से सम्यकत्व की भूमिका रची जाती है। इसी प्रकार समवायि कारणों के रूप में • ख्यात पांच कारण मुख्य-गौण भाव से कार्य करते हैं। फिर भी सद्गुरु आदि के शुभ निमित्तों से अपनी आत्मद्रव्य की विशिष्टयोग्यता को विकसितकर, उन तारकों की आत्माएँ निर्मल सम्यग्दर्शन को धारण करनेवाली बनती है। समकीत मिलते ही संसार मुट्ठी में . तारक श्री तीर्थंकरदेव की आत्माओं का आत्मद्रव्य ही विशिष्ट प्रकार का होता है। इसी से श्रीललितविस्तरा आदि शास्त्र ग्रंथों में आकालमेते हि परार्थव्यसनिनः आदि द्वारा उनकी आत्माओं को जगद्वर्ती दूसरी आत्माओं की अपेक्षा विशेष प्रकार की गणना की गयी है। परोपकार आदि विशिष्ट गुण उनकी आत्माओं में मानो छीपे हुए रहते है। समय व संयोग मिलने पर तथा मिथ्यात्वादि दुष्ट भावों की लघुता होने पर वे विशिष्ट गुण प्रकट होने लगते हैं।

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