Book Title: Prabhu Veer evam Upsarga
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 49
________________ विषयों को जहर की उपमा दी है वह कितनी सच्ची है। विषम विष रूप में ख्यात इस विषय का परिणामदारुणता कहां गुप्त है। विष तो मारता भी है और नहीं भी मारता है, मारे तो एक भव में एक ही बार परन्तु जब कि विषयों तो भव की परंपरा को बर्बाद कर जीव का सब जलाकर खाक कर देता है। कैसा यह करुण प्रसंग है, एक बाप जैसा बाप पुत्रीकामुक हो, न उसे पत्नी ऐसी महारानी की लज्जा आई, अपने युवापुत्र अचल जैसा विनम्र पुत्र से भी नहीं लजवाया और प्रजा की भी चिंता नहीं की। त्रिपृष्ठवासुदेव अब पुत्री मृगावती, महाराणी मृगावती रूप में माता की सौत बनी राजा इसके रूप में और भोग में आसक्त हुआ।कालक्रमानुसार श्रीविश्वभूतिदेव की आत्मा सात स्वप्न से सूचित पुत्ररूप में पूर्वजन्म में किया हुआ 'मैं अतुलबली बनूं।' नियाणा के फलस्वरूप मृगावती की कुक्षि में आया, योग्य समय में जन्म होते त्रिपृष्ठ नाम रखा गया वासुदेव बनने का कर्म लेकर आने से बाल्यकाल से ही अमुक प्रकार की क्रूरता पराक्रमशीलता हो इसमें आश्चर्य नहीं था । प्रतिवासुदेव के FORT सिंह को फाडते हुए त्रिपृष्ठ वासुदेव । 34 34 प्रभूवीर एवं उपसर्ग

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98