Book Title: Prabhu Veer evam Upsarga
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 71
________________ श्रीवीरप्रभु को तो दीक्षा के दिन से ही भौंरों के डंक, युवाओं की गंधपुटी की मांग, युवतियों की आसक्तिपूर्वक प्रार्थना आदि में असफल होते उपसर्गों की सामान्य शुरुआत हुई थी।हम लोग मुख्यतया संगमदेव द्वारा किये. गये उपसर्गों पर विचार करने की धारणा रखे रहे हैं । इसके अलावा तो चंडकौशिक प्रतिबोध, शूलपाणि यक्ष प्रतिबोधइसके पहले तापसों के आश्रम में से अप्रीति के कारण अभिग्रहपूर्वक चातुर्मास में ही प्रभु का विहार, गोशालक का मिलन और उसका प्रभाव से दंग रहना तथा उसका शिष्य के रूप में रहना, अनेक कुतुहलों आदि द्वारा उत्पात करना और प्रभु को मारपीट सहन करनी आदि अनेक बातें शास्त्रों में और प्रभु के चरित्रग्रन्थों में आती हैं । . चार्तुमास के मुशलधार वर्षा की भांति उपसर्गों की झडी लग गयी और प्रभु ने वह चंडकौशिक का उपसर्ग। साम्ययोग की तन्मयता से सहन किये हैं। कटपुतनी देवी का शीत उपसर्ग। प्रभूवीर एवं उपसर्ग 56

Loading...

Page Navigation
1 ... 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98