Book Title: Prabhu Veer evam Upsarga
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 83
________________ (OO बाण से भी भयंकर मुंहवाला सिंह भेजा । जैसे गरीब के घर में बरसात के समय अल्पतेल से जल रहे दीपक हवा के एक झोंके से बुझ जाता है उसी तरह थककर वे शांत हो गये। उसका भी कुछचला नही। सामान्य लोगों के प्राण हर लेने जैसी अनेक चेष्टाएँ करने के बावजुद भी प्रभु ध्यान में अचल ही रहे, संगमदेव हृदय से काफी दुःखी हुआ । १३. जैसे थे वैसे ही स्वरूपवाले श्रीसिद्धार्थ महाराज और त्रिसला देवी को लेकर हांजर कर दिया। करुण विलाप करते वे दोनों कहते हैं कि पुत्र । क्या तुमने ये संगमदेव का उपसर्ग । दुष्कर कार्य शुरु कर दिया हैं ? छोड़ ये प्रव्रज्या और घर आकर मेरी देखभाल कर ।हे वत्स! तुम्हारे विरह में हम अशरण और रक्षणरहिते हो गये हैं। इस प्रकार करने के बाद भी भगवान को अक्षुब्धदेखकर १४. संगम छावनी लगाता है। पाचक (खाना पकानेवाला) पत्थर न मिलने पर भगवान के दोनो पांव के बीच आग सुलगाकर रसोई बनाने लगता है। महानुभावो! इन्द्र महाराज और देव इन सभी उपसर्गों को देवलोक से देख रहे हैं। संगम को नीचे आते ही इन्द्र गीत-संगीत आदि को बंद कराकर दैन्यरूप से रह रहे हैं। इन सभी कदर्थनाओं के मूल में और मेरे द्वारा की गयी प्रभु की प्रशंसा है, यह उसे मालूम है । यह सुराधमको अटकाने में अच्छाई देखता नहीं है। इसीलिये उसने उपेक्षा की है। देव वेदना देख रहे हैं लेकिन उसे ले सकते नहीं, प्रभु वेदना का संवेदन करते हैं, परन्तु विरक्तभाव में रमण करते हैं। हम लोग तो क्षण भर भी रोग या पीडा बर्दाश्त नहीं कर सकते। सिंह अनगार के लिये औषधलियाँ सभाः भगवान ने भी दवा ली हैन? प्रभूवीर एवं उपसर्ग 68

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