Book Title: Prabhu Veer evam Upsarga
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 77
________________ पर छोड़ता है, ये क्षुद्र जंतु अपने तीक्ष्ण मुख से प्रभु को काँटते है, फिर भी प्रभु निष्कंपभाव से स्थिर रहते हैं। क्यों अच्छा ठीक ? तुलना करने जैसी है अपने आप से। ऐसे एक से बढकर एक, मात्र एक रात के बीस उपसर्ग अपने तो सुनने है । परमात्मा ने सबको सहा है। निस्पृह सदा सुखी भगवद्भाव अभी प्रकट हुआ नहीं है, राग की अभी उपस्थिति होने. बावजुद भी देह की चाहत से पर होने पर आपत्ति संपत्तिरूप लगती है। उन्हें सुख ही सुख है । इसीलिये स्वर्गीय परमगुरुदेवश्री फरमाते थे 'संसारसुख के ' भूखे को चाहे कहीं बैठाओ वह दुखी होने के लिये ही उत्पन्न हुआ है ।' कैसी ये मार्मिक बात है । आत्मसुख की रमणता की अपेक्षा परमात्मा को देहसुख की अपेक्षा ही न होने से 'देहे दुःखं महासुखं' लग रहा है । ५. अब बिच्छुओं की वणजार आयी एकदम पीली-पीली शरीर की कांतिवाले बड़ी पूंछ के छोड़ पर विषव्याप्त कांटेवाले ये बिच्छुओंने हमला तो कर दिया, लेकिन प्रभु की धीरता व सहनशीलता के सामने वे भी निर्बल सिद्ध हुए। प्रभु की ध्यानधारा और अधिक उत्कट बनती जा रही। वहां बेचारे बिच्छुओं की क्या बिसात? आप ही विचारिये कि संगम का गुस्सा नहीं बढे ? इसलिये उसने ६. नेवलाओं का एक काफिला तैयार कर दिया यह प्रभु को चलायमान करने की प्रतिज्ञा लेकर आया है। लेकिन उस बेचारे को पता नहीं है, तुम्हारे जैसे कितने ही कितनी प्रतिज्ञाएँ करते हैं और सब के सब पण टूटकर चूर्ण हो जाने के लिये ही पैदा होते हैं। यूंकि जगन्नाथ की धीरता मेरुपर्वत को भी मुकाबले में पिछे छोड़ दें ऐसी है। पृथ्वी पर इनकी वीरता के टक्कर का उदाहरण दूसरा न मिले ऐसी है। नेवलाओं अपने नुकीले दांढों से प्रभु के शरीर को खाने लगे । शरीर से मांस का टुकडे लेने लगे । लहु की पिचकारी निकल पड़े ऐसे दन्तप्रहार करने लगे... लेकिन समत्वयोग के उच्चतम शिखर पर पहुँचे ऐसे पुण्यपुरुष को इससे क्या हो सकता है ? ममत्व की अपेक्षा समत्व की ताकत अनेक गुणी अधिक है यह निश्चित ही है । प्रभु का अप्रतिम सत्व सभाः शरीर पर धार पड़ता है ? पूज्यश्रीः देह तो औदारिक है... प्रहार पर प्रहार इन पर हो रहे हैं... धार प्रभूवीर एवं उपसर्ग 62

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