Book Title: Prabhu Veer evam Upsarga
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 64
________________ प्रभूवीर एवं उपसर्ग 49 शास्त्र की नोंधहै कि 'सानादि के त्यागी श्रीप्रभु एकसाथ उगे हुए बारह-बारह सूर्य के तेज का धार रहे है । स्वजनों के उपरोधसे गृहस्थोचित वेष में रहे प्रभु प्रत्यक्षसंयमराशि सदृश दिखते है। घरमें रहे हुए प्रभु की बढी हुई मध्यस्थता महामुनिओं के चित्त को चमत्कार करानेवाली थी। एक वर्ष के बाद प्रभु वार्षिकदान करने का जब सोचते है तब सौधर्मेन्द्र महाराज का सिंहासन कॉपता है। वह सात-आठ डगले प्रभु की समक्ष जाकर प्रभुकी स्तवना करते है। वैश्रमण कुबर को प्रभुजी के वार्षिक दान में धन-पूर्ति करने का आदेश देते है। प्रभु के वार्षिक दान का वर्णन कौन से शब्दो में किया जाय?' . प्रभु का वरसीदान - इन्द्र के आदेशानुसार कुबेरभंडारी-वैश्रमणदेव, तीर्यजूंभक.... प्रकार के वैताढ्य की दो श्रेणियों में बसे हुए देवों को आदेश देते हैं, वे देव आज्ञा शिरोधार्य करके प्रभु के घर पर सुवर्णादि की वृष्टि करते हैं, जिसका तेज बालसूर्य के समान होता हैं । उद्घोषणापूर्वक प्रातःकाल के सूर्योदय से कल्पवर्तीवेला अर्थात् मध्याह्नकाल तक प्रभु बारह मेघ एक साथ हुए हो उस प्रकार दानवर्षा करते हैं । जिसमें माता-पिता और अपने नाम से अंकित सुवर्णमुद्रा देते हैं। तीनमार्ग, चारमार्ग(चौराहा), चौपाल आदि महामार्गों पर और ही अनेक स्थानों में हुई उद्घोषणा सुनकर आये अनाथ-सनाथ, पथिक, दरिद्र, कार्पटिक(कपड़ेवाले), वैदेशिक, ऋण से पीडित और दुखी जीवों के साथ-साथ अन्य भी धनाभिलाषियों को स्वयं दान देते हैं। ऐसे एक-एक दिन में एक करोड़ आठ लाख सुवर्णदान दिये जाते हैं। ....श्रीनंदिवर्धन राजा ने भी दूर-दूर देश से आये याचकवर्ग के लिये दानशाला आदि खोल दी है। हाथी-घोडा और रथ आदि उत्तम सामग्रियों में से जिन्हेंजोअपेक्षित हैवेखुशी-खुशी लेजा सकेंऐसी व्यवस्था करा दी।एकवर्ष में प्रभु ने तीनसौ अवासी करोड़ अस्सी लाख सुवर्णमुद्रा का दान दिया। प्रभु की दानवर्षा देखकर पैसे फेंक देने योग्य है ऐसा लोगों को लगता था । जाने कि दानधर्म की प्रथम प्ररूपणा करनी हो इसीलिये प्रभु ने वार्षिकदान दिया होगा? प्रभुका दान एकवर्ष तक चलते होने से वहवरसीदान कहा जाता है, इसी से आज भी दीक्षा के पावन अवसर पर दीक्षार्थी द्वारा दिये जाते दान को वरसीदान नाम दिया गया प्रतीत होता है।

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