Book Title: Prabhu Veer evam Upsarga
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 68
________________ प्रभूवीर एवं उपसर्गापाकाहा 53 प्रभुवीर का दीक्षा कल्याणक....! प्रभुका पंचमुष्टि लोच । उपसर्गों की झड़ी भगवान श्रीतीर्थंकरदेव जिस प्रकार के अप्रमत्तभाव से चारित्र का पालन करते हैं उस प्रकार पालन करने में कौन समर्थ है ? उपसर्ग-परिसहों में उनका अडोल स्वरूप अद्भुत है। प्रभु जब विहार करते हैं उस समय सभी रो रहे हैं, लेकिन प्रभुतो निर्लेप हैं। कदाचित् अपने लिये कोई रो रहे हों तो उसे देखना व सुनना अच्छा लगता है। कोई अपने लिये रोनेवाले हैं, राग करनेवाले है वे भी

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