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शा.प्रभूवीर एवं उपसर्ग निराश हो गये, ऐसे ही ऐसे आलोचना प्रतिक्रमण किये विना ही आयुष्य पूर्ण किया, घोर पराक्रमी तपोमय संयम पालने के बाद भी कषाय-नियाणावश सम्यक्त्व गँवा दिया था। तप-संयम के प्रभाव से महाशुक्र नामक देवलोक में देव हुए।अब अठारहवें भव की बात देखते हैं।
विषम-विष समान विषय भरतक्षेत्र के पोतनपुर का राजा रिपुप्रतिशत्रु की अग्रमहिषी भद्रा ने चार स्वप्नसूचित अचल नामक पुत्र को जन्म दिया, फिर सर्वांगसुंदर मृगावती पुत्री को भी जन्म दिया।पतिगृह में भेजने लायक पुत्री के रूप-यौवन से पिता स्वयं मोहित हुआ, राजसभा और प्रजा की आँखों में धूल रखकर, दंभपूर्वक बात के द्वारा सम्मति लेकर पुत्री के साथ विवाह किया, तब से प्रजा का पति रूप में राजा का प्रजापति ऐसा.नाम जगप्रसिद्ध हुआ।विषयों की विषज्वाला कितनी भयंकर है? पिता स्वयं पुत्री पर कामुक बनें, रक्षक भक्षक बनें वहाँ फरियादशिकायत किसे करनी ? रूठी हुई माता अन्यत्र चली गयी । प्रजा ने भी फिटकार सुनायी, किन्तु राजा की आँखें नहीं खुली... सचमुच, ज्ञानियों ने
मथुरीनगरी मे गोचरी हेतु जाते विश्वभूति मुंनि गाय के शीग के प्रहार से भूमि पर गिर पड़े यह देखकर विशाखानंदी का हास्य, मुनि क्रोधावेश में, गायके शीग को पकडकर आकाश में उछाल दिया ।