Book Title: Prabhu Veer evam Upsarga
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 60
________________ • प्रभूवीर एवं उपसर्ग 45 जाय तो जीवन उत्तम दर्जे का बनें,और ऐसे आचार सहज ही सिद्ध होते हैं। जगन्नाथ को भी कर्म उंधे मस्तक नौ-नौ महिने तक लटकाता है। जहाँ तक कर्म विद्यमान है वहाँ तक समर्थ जीवकी भी कैसी दशा है? जनसामान्य की तरह हि यह परमतारक का जन्म होता है। यूँ की तारक तीर्थंकर देवो का अचिन्त्य प्रभाव रहता है। गर्भकाल में प्रभुजी को लेशमात्र पीडा होती नहीं है, निर्मल तीन-तीन ज्ञान होते है। प्रभुजी के प्रभाव से माताजी को भी जन्म समय की (प्रसूति) पीडा होती नहीं है।माता की भक्ति के लिए प्रभुगर्भ में स्थिर रहे, इससे माता को पीडा हुई, यहजानकर प्रभु एक अंग से हलन-चलन करते है। LittISTS प्रभु का गर्भहरण । - प्रभुने ज्ञान से भविष्य जानकर गर्भमें ही माता-पिता की विद्यमानता तथा दीक्षा न लेने का अभिग्रह लिया यह बात आपके ध्यान में होगी । तब विचार किया था? जन्म होते ही त्रिभुवन में प्रकाश छाया, नारकी के जीव भी सुख की अनुभूति करने लगे यह सब वह तारक का प्रभाव था । इन्द्र सिंहासन का कल्पन, चार-चार हजार के परिवार सह छप्पन दिक्कुमारिकाओ सूतीकर्म करना, मेरु महोत्सव द्वारा इन्द्र अपूर्व भक्ति करते है। प्रभु के दर्शन मात्र से भावविभोर होकर देवलोक को तुच्छ मानना और प्रभु के हि प्रभाव से पृथ्वी

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