Book Title: Prabhu Veer evam Upsarga
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 57
________________ उत्सव, महात्माओं की भक्ति, धर्मात्माओं का अभिवादन आदि के द्वारा मोह को चूर-चूर करने की मेहनत करते हुए काल व्यतीत कर रहे हैं। कर्म को किसी की शर्म नहीं है। जो काल निश्चय करके आया है उसे पूरा करना ही पड़े बीस सागरोपम का आयुष्य है, प्रभु आज्ञा का आराधक होकर आये हैं इसलिये मोह सीधा चलता है। मोह की आज्ञा मानने का अभ्यास तो है ही, लेकिन परमेश्वर की आज्ञा याद आती है ? आज हम सब मोह की आज्ञा में या भगवान की आज्ञा में ? मोहराजा से पूछकर करते हो या कि प्रभु की आज्ञा के अनुसार जीने की मेहनत करते हो । मोहराजा निपुण राज्यकर्ता है, वह जीव का स्वभाव जानता Giel देवलोक में उत्पन्न हुए नंदनऋषि । है, वह कहता है कि तुम्हें जो करना है सो करो परन्तु मुझसे पूछकर करो, तप, जप-संयम सभी करे लेकिन उसकी आज्ञा में रहकर करो। अपनी क्या हालत है ? प्रभु का शासन जिसके हृदय में स्थिर हो जाय वह प्रभु की आज्ञा का पालन कर सकता है। आज धर्म करनेवाले कहेंगे कि भले खर्च लगे किन्तु अच्छा लगे वैसा करना । सत्य बोलो, अच्छा लगे वह करना कि अच्छा हो वह करना ? ये सभी विचार कौन कराते हैं? ऐसा लगता है कि ये सभी मोहराजा की करामत है । C हमारे यहां दीक्षा लेने हेतु आनेवालों की तीन प्रकार की परीक्षा बतायी है । प्रश्नपरीक्षा में पूछना पड़ता है कि किसलिये दीक्षा लेनी है ? वह जबाब 42 प्रभूवीर एवं उपसर्ग

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