Book Title: Prabhu Veer evam Upsarga
Author(s): Shreyansprabhsuri
Publisher: Smruti Mandir Prakashan

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Page 31
________________ योग्य है।जीवन जीने की कला जानने को मिले ऐसीये घटनाएँ हैं।प्रभ की आत्मा ने मरीची के भव में दीर्घकाल तक चरित्र पालन किया तथा कर्म के थपेड़ों की चोट खातेही निर्बल विचारों का उदय हुआ, उसके सामने सम्यक्त्व ने जो पराक्रम बताया उसे हम सभी देख ही रहे हैं। इसी से शास्त्रकार सम्यक्त्व का जगह-जगह खूब गुणगान किया करते हैं। समकीत जबतक न प्राप्त हो तबतक आत्मा संसार केहाथों गिरवी हैऐसा उसका व्यवहार होता हैएवं समकीत पाते ही शासन को सर्वस्व सौंप दिया हो ऐसी मन:स्थिति होती है। पुदल की आबादी में अपनी आबादी माननेवाले जीव जब समकीत पाते हैं तब उसे पुद्गल का संगमात्र बरबादी का कारण लगता है। कर्मबंधके कारणों से सम्यक्त्वी सावधान होता रहता है, उसे मालूम भी होता है कि संसार में कर्मसत्ता दृष्टि में आयी सत्ता है। आपसब जानते है न ? दुनिया की सत्ता अंधसत्ता है और कर्मसत्ता देखती सत्ता है? दयालु परम तारक गुरुदेवश्री के श्रीमुख से सुना है कि 'कर्मराजा ने श्रीअरिहंतदेवों का चरण चुमकर विनती की हैं कि आपकेसेवक व आज्ञापालक की सेवा करने के लिये मैं प्रतिबंधित हूं सपना नवीन वेश में मरीची महात्माओ के साथ विहार करते है। 16 प्रभूवीर एवं उपसर्ग

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