Book Title: Pandav Purana athwa Jain Mahabharat
Author(s): Ghanshyamdas Nyayatirth
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

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Page 7
________________ कर दो वर्षकी कर दें । कारण यह कि पहले विचारों के अनुसार केवल हिन्दी भाषामें पान-पुराण छपवाया जाता तो वह कोई आठ महीनेमें समाप्त हो जाता और तब हम अपनी प्रतिज्ञाको ठीक समय पर पूरा कर देते; परंतु अब उसके संस्कृत सहित छपवानमें सवा या डेढ़ वर्ष लग जायगा। पहले हमने अनुमान किया था कि सारा ग्रंथ कोई सौ फामीमें समाप्त हो जायगा; पर अब देखते है कि वह लगभग डेढ़सौ फार्मोसे कममें न होगा । इसी प्रकार उसके मूल्यमें भी हमें १० ) की जगह १८) करने पड़ेंगे । ऐसी हालतमें हमें अपनी प्रतिज्ञाको पूरा करनेमें कुछ कठिनाई पडेगी । अत एव हम आशा करते है कि हमारे सहायक-गण हमारी इस प्रार्थनोको अपनी उदार स्वीकृतिसे सफल करेंगे। दूसरी बात यह है कि पहले हमने अपनी भेंटकी योजना * सिर्फ २० ग्राहकोंके लिए की थी; परंतु अब वह हमें ४० के लिए कर देनी पड़ी है । और यह प्रकट करते हमें बड़ी प्रसन्नता होती है कि हमारी योजनाके अनुसार हमें २८ ग्राहक मिल भी गये है। अब सिर्फ १२ और शेष है। हमें विश्वास है उदार महानुभावोंकी कृपासे हम बहुत शीघ्र सफलता लाभ कर लेंगे। आपके कृपापात्र, उदयलाल विहारीलाल, मालिक। - - -- - - - ___* इस योजनाको अन्यत्र पढ़नेकी कृपा कीजिए।'

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