Book Title: Panchashak Prakaranam
Author(s): Dharmratnavijay
Publisher: Manav Kalyan Sansthanam
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२७२ ३/२६ १५/११ १८/४५
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१४/३९
१०/४९
१४/४०
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११/३६ ११/३७ १६/४४ १८/४८ १२/५० ९/४७
परिशिष्टम्-२ जत्ताविहाणमेयं
९/५० | जिण्णासावि हु एत्थं जत्थ कसायणिरोहो १९/२६ | जीयमिणं आणाओ जत्थऽत्थमेइ सूरो
१८/११ | जुत्तीए अविरुद्धो जमहिगयबिंबसामी
८/१९ जुत्तीसुवण्णगं पुण जमुभयजणणसभावा
३/४४ जुत्तो पुण एस कमो जम्हा उ अभिस्संगो
६/१९ जे इह सुत्ते भणिया जम्हा एसो सुद्धो
१९/४४ जे इह होंति सुपुरिसा जम्हा समग्गमेयंपि
१४/१२ जे उ तह विवज्जत्था जय वीयराय ! जगगुरु ४/३३ जे उ पमत्ताणाउट्टियाएँ जयणा उ धम्मजणणी ७/३० जे जमि जमि कालमि जयणा य पयत्तेणं
७/२९ जे पुण एयविउत्ता जयणाए वट्टमाणो
७/३१ जेटुंमि विज्जमाणे जरसमणाई रयणा
४/२६ जो अत्तलद्धिओ खलु जह उस्सग्गमि ठिओ १४/१४ जो चेव मावलेसो जह बालो जपतो
१५/४७ जो जस्स कोइ भत्तो जह संकिलेसओ इह
१५/४ जो साहू गुणरहिओ जह सिद्धाण पतिट्ठा
८/३४ जो जहवायं ण जा गंठी ता पढमं
३/३० जो होइ निसिद्धप्पा जा चिय गुणपडिवत्ती ९/२४ जोए करणे जाओ य अजाओ य ११/२७ जोग्गेऽवि अणाभोगा जायइ य सुहो एसो
९/१९ जो च्चिय सुहभावो खलु जायणपुच्छाणुण्णा
१८/९ झयइ पडिमाएँ ठिओ जिणबिंबस्स पइट्ठा
८/२ णंदादिसुहो सद्दो जिणभवणकारणविही ७/९ ण करति जिणभवणकारणाइवि ६/३५ ण य अपुणबंधगाओ जिणभवणबिंबठावणजत्तापूजाइ ण य तज्जुत्तो अण्णं जिणबिंबपइट्ठावण
७/४५ ण य तत्थवि तदणूणं जिणभवणादिविहाणद्दारेणं . ६/१७ ण य तस्स तेसुवि तहा
१२/३५
६/३३ १३/२१ -- १४/४१
११/४६ १२/२५
१४/३ १२/९
७/८
१०/१९
७/१९
१४/६
३/८ १४/२२ ३/२३
५/२२

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