Book Title: Pallival Jain Itihas Author(s): Daulatsinh Lodha Publisher: Nandlal Jain Pallival Bharatpur View full book textPage 4
________________ नम्र निवेदन आज सतत २५ वर्षों के परिश्रम के पश्चात 'श्री पल्लीवाल जैन इतिहास' पाठकों के कर कमलों में प्रस्तुत करते हुए मुझे अपार आनन्द हो रहा है। प्रथम मुनिराज श्री दर्शनविजयजी महाराज त्रिपुटी ने इस कार्य में प्रयास किया। उसके पश्चात जैन साहित्य रत्न सेठ अगरचन्दजी साहब नाहटा का 'पल्लीवाल इतिहास' के सम्बन्ध में एक विद्वत्ता पूर्ण लेख श्री आत्मानन्द जन्म शताब्दी स्मारक नथ में पढ़ने को मिला। फिर पता लगा कि अजमेर निवासी श्री जुगेनचन्द्रजी के पास इस विषय की सामग्री का हस्तलिखित अच्छा संग्रह है । उनसे सम्पर्क स्थापित करके वह प्राप्त किया एवम् श्री अगरचन्दजी नाहटा से पत्र व्यवहार करके पल्लीवाल जैन इतिहास के लिखाने में सहयोग मिलने का आश्वासन लिया । श्री नाहटाजी ने अपनी देख रेख में यह पल्लीवाल जैन इतिहास' श्री दौलतसिंहजी लोढा 'अरविन्द' से लिखवाने का कष्ट उठाया । अतः मैं मुनिराज श्री दर्शनविजयजी महाराज, श्री जुगेनचन्द्रजी, श्री अगर चन्दजी नाहटा और दौलतसिंहजी लोढा का आभार मानता हूँ। उपरोक्त सज्जनों के सहयोग से ही बड़ी खोज के पश्चात यह इतिहास प्रकाशित कराने की मेरी और मेरे पिताजी आदरणीय श्री मिट्ठनलालजी कोठारी की सदिच्छा पूर्ण हो सकी है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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