Book Title: Paiso Ka Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 8
________________ पैसों का व्यवहार वह अधिक पुण्यशाली कहलाये। और उससे भी आगे क्या? संकल्प कर ही तैयार हो जाये। संकल्प किया यह मेहनत संकल्प किया कि दो बंगले, एक गोदाम, ऐसा संकल्प करने पर तैयार हो जाये । वह महा पुण्यशाली । संकल्प किया, इतनी (वही ) मेहनत, बस संकल्प करना पड़ेगा, बिना संकल्प के नहीं होता। संसार, वह बिना मेहनत का फल है। इसलिए भुगतो, किन्तु भुगतना भी आना चाहिए। भगवान ने कहा कि इस संसार में जितनी आवश्यक चीजें हैं उसमें यदि तुम्हें कमी हो तब स्वाभाविक रूप से दुःख होगा । इस वक्त हवा बंद हो गई हो और दम घुटता हो तो हम कहेंगे कि दुःख है इन लोगों को । दम घुटने जैसा वातावरण हो तब दुःख कहलायेगा । दोपहर होने पर दो-तीन बजे तक खाना नहीं मिले तो हम समझें कि इनको दुःख है कुछ | जिसके बगैर शरीर जी नहीं सके ऐसी आवश्यक चीजें, वे नहीं मिले तब वह दुःख कहलायेगा । यह सब तो है, विपुल मात्रा में है, पर उसे भुगतते भी नहीं और अन्य बातों में उलझे पड़े हैं। उसे भुगतते ही नहीं। क्योंकि एक मिल मालिक भोजन करने बैठता है तब बत्तीस तरह के पकवान होते हैं पर वह मूआ, मिल में होता है। सेठानी पूछे कि, 'पकौडे काहे के (कैसे) बने हैं?' तब कहे, 'मुझे मालूम नहीं। तू बार बार पूछा मत कर।' ऐसा सब है यह। यह संसार तो ऐसा है । उसमें भोगनेवाले भी होते हैं और मेहनत करनेवाले भी होते हैं, सब मिला-जुला होता है। मेहनत करनेवाले ऐसा समझें कि यह 'मैं करता हूँ।' उनमें यह अहंकार होता है। जब कि भुगतनेवालों में यह अहंकार नहीं होता। पर तब इनको भोक्तापन का रस मिले ( रस है)। मेहनत करनेवालों को अहंकार का गर्वरस मिले। एक सेठ ने मुझ से कहा, 'मेरे लडके से कुछ कहिए न, मेहनत करता नहीं। चैन से गुलछर्रे उड़ाता है।' मैंने कहा, 'कुछ कहने जैसा नहीं है। वह अपने खुद के हिस्से का पुण्य भुगत रहा है उसमें हम क्यों दखल दें?' उस पर उस सेठ ने मुझ से कहा कि, 'उसे सयाना नहीं बनाना?' मैंने कहा, 'संसार में जो (भोग) भुगत रहा है वह सयाना कहलाये। बाहर पैसों का व्यवहार फेंक दे, वह पगला कहलाये और मेहनत करता रहे वह तो मज़दूर कहलाये।' लेकिन मेहनत करता है उसे अहंकार का रस मिले न! अचकन (लम्बा कोट) पहनकर जाने पर लोग, सेठजी आये, सेठजी आये, करें, इतना ही केवल । और भुगतनेवाले को ऐसी कुछ सेठ-बेठ की परवाह नहीं होती। हमने तो हमारा भुगता उतना सही। ४ दुनिया का कानून ऐसा है कि, हिन्दुस्तान में जैसे जैसे बिना बरकत के मनुष्य पैदा होंगे वैसे लक्ष्मी बढ़ती जायेगी और जो बरकतवाला हो उसके पास रुपये नहीं आने देंगे। अर्थात् यह तो बिनबरकत के लोगों को लक्ष्मी प्राप्त हुई है, और टेबल पर भोजन मिलता है । केवल, कैसे खानापीना, यह नहीं आता। इस काल के जीव भोले कहलाये। कोई ले गया तब भी कुछ नहीं । उच्च जाति, नीच जाति कुछ परवा नहीं। ऐसे भोले हैं इसलिए लक्ष्मी बहुत आये। लक्ष्मी तो, जो बहुत जागृत होगा उसे ही नहीं आयेगी। बहुत जागृत होगा वह बहुत कषाय करेगा। सारा दिन कषाय करता रहे। और यह (भोले) तो जागृत नहीं, कषाय ही नहीं न, कोई झंझट ही नहीं न! लक्ष्मी आये वहाँ, लेकिन खर्च करना नहीं आता। अचेतावस्था (बेहोशी) में जाती रहे सब । यह धन जो है न वर्तमान में, यह सारा धन ही खोटा है। बहुत कम मात्रा में सच्चा धन है। दो तरह का पुण्य होता है, एक पापानुबंधी पुण्य कि जो अधोगति में ले जाये ऐसा पुण्य और जो उर्ध्वगति में ले जाये वह पुण्यानुबंधी पुण्य । अब ऐसा धन बहुत कम बचा है। वर्तमान में ये रुपये जो बाहर सब जगह दिखाई देते हैं न, वे पापानुबंधी पुण्य के रुपये हैं और वे निरे कर्म बाँधते हैं और भयंकर अधोगति में ले जा रहे हैं। पुण्यानुबंधी पुण्य कैसा हो? निरंतर अंतरशांति के साथ शान शौक हो, वहाँ धर्म होता है। आज की लक्ष्मी पापानुबंधी पुण्याई की है, इसलिए वह क्लेश कराये ऐसी है, उसके बजाय कम आये तो अच्छा। घर में क्लेश तो नहीं

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