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पैसों का व्यवहार
पैसों का व्यवहार
प्लस-माइनस होकर जो बाकी बचेगा वह उसका। उसका हेतु क्या कि सरकार ले जायेगी उसके बजाय इसमें डाल दो न!
प्रश्नकर्ता : लोग लक्ष्मी का संग्रह करे, यह हिंसा कहलाये कि नहीं?
दादाश्री : हिंसा ही कहलाये। संग्रह करना यह हिंसा है। दूसरे लोगों के काम नहीं आती न!
प्रश्नकर्ता : कुछ पाने की अपेक्षा से जो दान करते हैं, उसकी भी शास्त्रों में मनाई नहीं? उसकी निंदा नहीं करते?
दादाश्री : ऐसी अपेक्षा नहीं रखना उत्तम है। अपेक्षा रखने पर तो वह दान निर्मूल हो गया, सत्वहीन हो गया कहलाये। मैं तो कहता हूँ कि पाँच ही रुपये दीजिए पर बिना अपेक्षा के।
कोई धर्म के नाम पर लाख रुपये दान करे और तख्ती लगवायें और कोई मनुष्य एक ही रुपया धर्म के नाम पर देता है तो उसकी किमत ज्यादा है, फिर भले ही एक रुपया दिया हो। और यह तख्ती लगवाई वह, आपका पुण्य कीर्ति में खर्च हो गया, जो धर्म के नाम पर दिया उसके एवज उसने तख़्ती लगवाकर ले लिया। और जिसने एक ही रुपया दिया होगा पर उसकी वसुली नहीं की है इसलिए उसका बैलेन्स बाकी रहा।
एक मनुष्यने मुझ से प्रश्न किया कि, 'बच्चों को कुछ नहीं देना क्या?' मैंने कहा, 'बच्चों को देना जरूर, हमारे पिताने जो हमें दिया हो वह सारा दे देना पर खुद ने जो कमाया है वह अपना। उसे हम चाहे वहाँ धर्म के नाम पर खर्च कर दें।'
प्रश्नकर्ता: हम वकीलों का कानून भी यही कहता है कि बापदादा की प्रोपर्टी (मिल्कियत) हो वह बच्चों को देनी ही पड़े और खुद की कमाई का जो चाहे सो करे।
दादाश्री : हाँ, जो चाहे सो करे। अपने हाथों ही कर लेना! हमारा मार्ग क्या कहता है कि अपना खुद का हो वह माल त् अलग करके उपयोग में ले, तो वह तेरे साथ आयेगा। क्योंकि यह ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् अभी एक-दो अवतार बाकी रहे हैं, इसलिए साथ में होना चाहिए न!
प्रश्नकर्ता : पुण्य के उदय से जरूरत से ज्यादा लक्ष्मी की प्राप्ति हो तब क्या करना?
दादाश्री : तब खर्च कर देना। बच्चों के लिए ज्यादा मत रखना। उनको पढ़ाना-लिखाना, सब कम्पलिट (पूरा) करके उनको नौकरी पर लगा दिया अर्थात् फिर वे कमाने लग गये, इसलिए ज्यादा मत रखना। थोडे-बहुत बैंक आदि किसी जगह रख छोड़ना, जो कभी मुश्किल में आने पर उन्हें दे सकें। उनको बताना नहीं कि भाई मैंने रख छोड़े हैं। वरना मुश्किल में नहीं आते होंगे फिर भी आयेंगे।
प्रश्नकर्ता : अगले जन्म के पुण्य उपार्जन के लिए इस जन्म में क्या करना?
दादाश्री : इस जन्म में जो पैसे आये, उसका पाँचवा हिस्सा भगवान के यहाँ मंदिर में दान करना। पाँचवा हिस्सा लोगों के सुख के लिए खर्च करना। अर्थात् उतना तो वहाँ पर ऑवरड्राफट पहुँचा! यह पिछले अवतार का ऑवरड्राफट तो भोगते हो। इस जन्म का पुण्य है वह फिर आगे आयेगा। आज की कमाई आगे काम आयेगी।
[८] लक्ष्मी और धर्म मोक्षमार्ग में दो चीजें नहीं होती। स्त्री संबंधी विचार और लक्ष्मी संबंधी विचार ! जहाँ स्त्री का विचार होगा वहाँ धर्म तो होगा ही नहीं और लक्ष्मी का विचार होगा वहाँ भी धर्म नहीं होगा। उन दो मायाओं की वजह से तो यह संसार खड़ा रहा है। इसलिए वहाँ धर्म खोजना यह भूल है। तब वर्तमान में बिना लक्ष्मी के कितने केन्द्र चल रहे हैं?
और तीसरा क्या? सम्यक् दृष्टि होनी चाहिए।