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पैसों का व्यवहार
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पैसों का व्यवहार
तो धान में से चावल निकलेंगे, अर्थात् खाली पट्टा देने का फ़र्क मात्र है। हेतु निश्चित करना है और वह हेतु हमें लक्ष में रहना चाहिए। बस, और कुछ नहीं है। लक्ष्मी लक्ष्य में नहीं रहनी चाहिए।
प्रश्नकर्ता : लक्ष्मी का सदुपयोग किसे कहलाये?
दादाश्री : लोगों के उपयोग हेतु या भगवान हेतु खर्च करें वह सदुपयोग कहलाये।
प्रश्नकर्ता : लक्ष्मी टीकती नहीं तो क्या करना?
दादाश्री : लक्ष्मी तो टीकनेवाली नहीं। पर उसका रास्ता बदल देना। दूसरे रास्ते जाती हो तो उसका प्रवाह बदल देना और धर्म के रास्ते मोड़ देना। जितनी सुमार्ग पर गई उतनी सही। भगवान आये फिर लक्ष्मी टीके, उसके सिवा लक्ष्मी कैसे टीकेगी?
पैसे खोटे रास्ते पर गये तो कंट्रोल (वश) कर देना और पैसे सही रास्ते खर्च हो तो डीकंट्रोल (खुला) कर देना।
यह भाईजी किसी एक व्यक्ति को दान कर रहे हैं वहाँ पर कोई बुद्धिमान कहे कि, 'अरे, इसे क्यों देते हो?' तब यह कहेंगे, 'अब देने दीजिए न, गरीब है।' ऐसा कहकर दान करते हैं और वह गरीब ले लेता है। पर वह बुद्धिमान बोला उसका उसे अंतराय हुआ। इससे फिर उसको दुःख में कोई दाता नहीं मिलेगा।
[७] दान के प्रवाह अब हम तो पश्चाताप से सब मिटा सकें और मन में तय करें कि ऐसा नहीं बोलना चाहिए और बोल दिया उसकी क्षमा चाहता हूँ. तो मिट जायेगा। क्योंकि वह खत पोस्ट में डाला नहीं है, उससे पहले लिखाई बदल देते हैं कि पहले हमने सोचा था दान नहीं करना चाहिए वह गलत है पर अब हमारे विचार में दान करना सही है, इससे उसके आगे का मिट जायेगा।
खरे वक्त पर तो धर्म अकेला ही आपकी मदद में खड़ा रहेगा। इसलिए लक्ष्मीजी को धर्म के प्रवाह में बहने दीजिए।
पैसों का स्वभाव कैसा है? चंचल है, इसलिए आयेंगे और एक दिन फिर चले जायेंगे। इसलिए पैसे लोगों के कल्याण हेतु खर्च करना। जब आपका खराब उदय आया हो तो लोगों को दिया ही आपकी हेल्प करेगा, इसलिए पहले से समझना चाहिए। पैसे का सद्व्यय तो करना ही चाहिए न?
दान के चार प्रकार हैं :
एक आहारदान, दूसरा औषधदान, तीसरा ज्ञानदान और चौथा अभयदान।
ज्ञानदान में पुस्तकें छपवाना, सही राह ले जाये और लोगों का कल्याण हो ऐसी पुस्तकें छपवाना, यह ज्ञानदान। ज्ञानदान करने से अच्छी गतियाँ, उच्च गतियाँ प्राप्त करे अथवा तो मोक्ष में जाये।
अर्थात् भगवान ने ज्ञानदान को प्राथमिकता दी है और जहाँ पैसों की जरूरत नहीं वहाँ पर अभयदान की बात कही है। जहाँ पैसों का लेन-देन है, वहाँ पर यह ज्ञानदान का निर्देश है और साधारण स्थिति, नरम स्थिति के लोगों को औषधदान और आहारदान का निर्देश किया
है।
और चौथा अभयदान। अभयदान तो कोई जीव मात्र को त्रास नहीं हो ऐसा वर्तन रखना, वह अभयदान!
प्रश्नकर्ता : आज के जमाने में धर्म में दो नंबर का पैसा खर्च होता है, तो इससे लोगों को पुण्य उपार्जन होगा क्या?
दादाश्री : अवश्य होगा न! उसने त्याग किया न उतना (दान दिया)! अपने पास आये का त्याग किया न! पर उसमें हेतु अनुसार पुण्य मिलेगा, हेतु लक्षी! पैसे दिये यह एक ही बात नहीं देखी जाती। पैसों का त्याग यह निर्विवाद है। बाकी पैसे कहाँ से आये? हेतु क्या है? यह सब