Book Title: Paiso Ka Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 11
________________ पैसों का व्यवहार पैसों का व्यवहार दुःख और दुःख। अहमदाबाद के सेठ लोगों को भी दुःख। क्या कारण होगा इसका? प्रश्नकर्ता : उन्हें संतोष नहीं। दादाश्री : इसमें सुख था ही कहाँ पर? सुख था ही नहीं इसमें। यह तो भ्रांति से प्रतीत होता है। जैसे किसी शराबी का एक हाथ गटर में पड़ा हो तब भी कहेगा, हाँ भीतर ठंडक महसूस होती है। बहुत अच्छा है, वह शराब की वजह से लगता है। बाक़ी इसमें सुख होगा ही कहाँ पर? यह तो निरी जूठन है सब। ___ इस संसार में सुख है ही नहीं। सुख होगा ही नहीं और सुख होता तब तो मुम्बई ऐसा नहीं होता। सुख है ही नहीं। यह तो भ्रांति का सुख है और वह भी टेम्पररी एडजस्टमेन्ट है केवल। धन का बोझ रखने जैसा नहीं। बैंक में जमा होने पर चैन की साँस ले, और जाने पर दुःख हो। इस संसार में कुछ भी संतोष लेने जैसा नहीं है, क्योंकि टेम्पररी है। मनुष्य को क्या दु:ख होता है? एक व्यक्ति ने मुझसे कहा, कि मेरा बैंक में कुछ नहीं। बिलकुल खाली हो गया। नादार हो गया। मैंने पूछा, 'कर्ज कितना था?' वह कहे, 'कर्ज नहीं था।' तब नादार नहीं कहलाये। बैंक में हजार दो हजार रुपये जमा हैं। फिर मैंने कहा, 'वाइफ तो है न?' उसने कहा कि वाइफ थोड़े ही बेची जायेगी? मैंने कहा, 'नहीं, लेकिन तेरी दो आँखें है, वे तुझे दो लाख में बेचनी है?' ये आँखें, ये हाथ, पैर, दिमाग़ इन सब मिल्कियत की तू क़ीमत तो लगा। बैंक में पैसा नहीं होने पर भी तू करोडपति है। तेरी कितनी सारी मिल्कियत है, उसे बेच दे, चल। ये दो हाथ भी तू नहीं बेचेगा। बेशुमार मिल्कियत है तेरी। इन सब को मिल्कयत समझकर तुझे संतोष रखना चाहिए। पैसे आये कि न आये लेकिन वक्त पर भोजन मिलना चाहिए। प्रश्नकर्ता : जीवन में आर्थिक परिस्थिति कमजोर हो तब क्या करना? दादाश्री : एक साल बारिश नहीं होने पर किसान क्या कहते हैं कि हमारी आर्थिक स्थिति खतम हो गई। ऐसा कहते हैं कि नहीं कहते? फिर दूसरे साल बारिश होने पर उसका सुधर जाये। अर्थात् आर्थिक स्थिति कमजोर हो तब धैर्य रखना चाहिए। खर्च कम कर देना चाहिए और किसी भी रास्ते मेहनत, प्रयत्न अधिक करने चाहिए। अर्थात कमजोर परिस्थिति होने पर ही यह सब करना, बाक़ी परिस्थिति अच्छी होने पर तो गाडी अपने आप चलती रहे। इस देह को जरूरत के अनुसार खुराक ही देने की आवश्यकता है, उसे और कुछ आवश्यक नहीं, और नहीं तो फिर ये त्रिमंत्र हर रोज घंटाभर बोलिये न! यह बोलने पर आर्थिक परिस्थिति सधर जायेगी। उसका उपाय करना चाहिए। उपाय करने पर सुधर जायें। आपको यह उपाय पसंद आयेगा? इस दादा भगवान का एक घंटा नाम लेने पर पैसों की बारिश होगी। लेकिन ऐसा करते नहीं न, बाकी हजारों लोगों को पैसे आये हैं। हजारों लोगों की अड़चन गई। 'दादा भगवान' का नाम लें और काम नहीं हो तब वे 'दादा' नहीं। लेकिन ये लोग इस प्रकार नाम लेते नहीं न! लक्ष्मी तो कैसी है? कमाने में दुःख, सँभालने में दुःख, रक्षण करते दुःख और खर्च करने में भी दुःख। घर में लाख रुपये आने पर उसे संभालने की झंझट होने लगे। किस बैंक में इसकी सेफसाइड (सलामती) है यह खोजना होगा और सगे-संबंधी को मालम होते ही तुरंत दौडे आये। मित्र सब दौड़े आये, कहने लगे, 'अरे यार मेरे पर इतना भी यक़ीन नहीं? केवल दस हजार की जरूरत है', तब फिर ज़बरदस्ती देना पड़े। यह तो, पैसों का भराव हो तब भी दुःख और तंगी हो तब भी दुःख। यह तो नोर्मल हो वही अच्छा वरना फिर लक्ष्मी खर्च करने पर भी दुःख हो। हमारे लोगों को तो लक्ष्मी को सँभालना नहीं आता और भोगना भी नहीं आता। भोगते समय कहेंगे कि इतना ज्यादा महँगा? इतना महँगा कैसे लें? अबे चुपचाप भोग ले न ! लेकिन भोगते समय भी दुःख, कमाते

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