Book Title: Paiso Ka Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 20
________________ पैसों का व्यवहार २७ पैसों का व्यवहार पैसे माँगने जाना किसे भाये? सगे चाचा के पास लेने जाना भाये? क्यों नहीं भाये? अरे, संबंधी के पास से लेने में भी किसी को अच्छा नहीं लगता। बाप के पास से भी लेना अच्छा नहीं लगे। हाथ पसारना अच्छा नहीं लगता। प्रश्नकर्ता : उसका अहंकार खरीद लिया। मगर हमें उसका अहंकार क्या काम आयेगा? दादाश्री : अहह ! उसका अहंकार खरीद लिया माने उसमें जो शक्तियाँ है वे हमारे में प्रकट हुई। वह अहंकार बेचने आया बेचारा! प्रश्नकर्ता : हाथ-पैर सलामत हो फिर भी भीख माँगे तो उसे दान देने से इन्कार करना गुनाह है? दादाश्री : दान नहीं करते उसमें हर्ज नहीं। पर उसे ऐसा कहें कि यह हट्टा-कट्टा भैंसे जैसा होकर ऐसा क्यों करता है? ऐसा हम नहीं कह सकते। आप कहें कि भाई, मैं दे सकूँ ऐसा नहीं है। सामनेवाले को दुःख हो ऐसा हमें नहीं बोलना चाहिए। वाणी ऐसी अच्छी रखें कि सामनेवाले को सुख हो। वाणी तो बड़े से बड़ा धन है आपके पास। वह दूसरा धन तो टिके या नहीं भी टिके, पर वाणी तो सदा के लिए टिके। आप अच्छे शब्द निकालें तो सामनेवाले को आनंद होगा। आप उसे पैसे नहीं दें मगर अच्छे शब्द बोलिये न! यहाँ आप बड़ा बंगला बनायेंगे तो जगत के भिखारी होंगे। छोटा घर तो जगत के आप राजा! क्योंकि यह पुद्गल है, पुद्गल बढ़ने पर तो आत्मा (प्रतिष्ठित आत्मा) वज़न गँवा दे। और पद्गल कम हुआ तो आत्मा (प्रतिष्ठित आत्मा) भारी हो जाये। अर्थात् संसार के दुःख, आत्मा का विटामीन है। यह जो दुःख हैं वे आत्मा का विटामीन है और सुख जो हैं वह देह का विटामीन है। रुपयों का स्वभाव हमेशा से कैसा है? चंचल, इसलिए दुरुपयोग नहीं हो उस तरह आप उसका सदुपयोग करें। उसे स्थिर मत रखना। संपति के प्रकार कितने हैं? तब कहें, स्थावर (अचल) और जंगम (चल)। जंगम माने ये डॉलर आदि सब, और स्थावर माने यह मकान आदि सब! उन में यह स्थावर अधिक टिकेगी। और जंगम माने नकद डालर आदि जो हो वे तो चले ही समझें! अर्थात् नकद का स्वभाव कैसा? दस साल से ज्यादा यानी ग्यारहवे साल नहीं टिकते। फिर सोने का स्वभाव चालिसपचास साल टिकने का, और स्थावर मिल्कियत का स्वभाव सौ साल टिकने का। अर्थात् मुदतें सभी अलग-अलग होगी मगर आखिर में तो सभी जानेवाला ही है। इसलिए हमें यह सब समझकर चलना चाहिए। ये वणिक पहले क्या करते थे, नक़द पच्चीस प्रतिशत ब्याज पर रखते थे। पच्चीस प्रतिशत सोने में और पच्चीस प्रतिशत मकान में लगाते, इस प्रकार पूँजी की व्यवस्था करते थे। बड़े पक्के लोग! अभी तो लड़के को ऐसा कुछ सिखाया भी नहीं जाता! क्योंकि अब पूँजी ही नहीं रही उतनी, तो क्या सिखाते? यह पैसे का काम कैसा है कि हमेशा ग्यारहवें साल उसका नाश होता है। दस साल तक चले। यह बात सच्चे पैसे की है, आया समझ में? खोटे पैसों की तो बात ही अलग है। सच्चे पैसे ग्यारहवे साल खतम हो जायें। प्रश्नकर्ता : शेयर बाजार में सट्टेबाजी करना या सोना खरीदना, क्या अच्छा ? दादाश्री : शेयर बाजार तो जाना ही नहीं चाहिए। शेयर बाजार में तो खिलाडी का काम है। उसमें बीच के लोग भून जाते हैं ! खिलाड़ी लोगों को रास आये वहाँ। इसमें बड़े खिलाडियों को लाभ होता है और छोटे लोग जो है वे बेचारे मुश्किल से अपना खर्च निकालते हैं। प्रश्नकर्ता : दादाजी हमारे अमरिका के महात्मा पूछते हैं कि हमने जो कुछ थोड़ा-बहुत कमाया है उसे लेकर इन्डिया चले जायें? बच्चों का विशेष खयाल आता है कि अमरिका में अच्छे संस्कार नहीं मिलते। दादाश्री : हाँ, यह सब तो ठीक है। यहाँ यदि पैसे कमा लिए हो

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