Book Title: Paiso Ka Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 24
________________ पैसों का व्यवहार ३५ पैसों का व्यवहार ये वाक्य आपकी दुकान पर लिखकर लगवाना : (१) प्राप्त को भुगतें-अप्राप्त की चिंता मत करें। (२) भुगते उसकी भूल। (३) डिस्ऑनेस्टी इज द बेस्ट फूलिशनेस। सभी चीजें दुनिया में है। पर 'सकल पदार्थ है जगमांहि, भाग्यहीन नर पावत नहीं'। ऐसा कहते हैं न? अर्थात् जितनी कल्पना में आये उतनी चीजें संसार में होती है पर आपके अंतराय नहीं होने चाहिए, तभी वे मिलती हैं। सत्यनिष्ठा चाहिए। ईश्वर कुछ मदद करने के लिए फालतु बैठे नहीं है। आपकी नीयत सच्ची होगी तभी आपका काम होगा। लोग कहते हैं कि, 'सच्चे की ईश्वर मदद करता है !' पर नहीं, ऐसा नहीं है। ईश्वर सच्चे की मदद करता हो तो खोटे ने क्या गुनाह किया है? क्या ईश्वर पक्षपाती है? ईश्वर को तो सब जगह निष्पक्षपाती रहना चाहिए न? ईश्वर किसी की ऐसी मदद नहीं करता। वह इसमें हाथ ही नहीं डालता। ईश्वर का नाम याद करते ही आनंद होता है, उसकी वजह क्या है कि वह मूल वस्तु है, और खुद का ही स्वरूप है। इसलिए याद करते ही आनंद हो। बाकी ईश्वर कुछ करनेवाले नहीं है। वे कुछ दे ही नहीं सकते। उनके पास कुछ है ही नहीं, तो क्या देंगे? प्रश्नकर्ता : दादाजी, व्यवहार किस तरह करना? दादाश्री : विषमता पैदा होनी नहीं चाहिए। समभाव से समाधान (निपटारा) करना चाहिए। हमें जहाँ से काम निकालना हो, वह मैनेजर कहे, 'दस हजार दीजिए तो ही आपका पाँच लाख का चेक निकालूंगा।' अब हमारे शुद्ध व्यापार में कितना मुनाफा होगा? पाँच लाख रुपयों में, दो लाख हमारे घर के हो और तीन लाख औरों के हो, तब वे लोग धक्के खाये वह क्या अच्छा कहलाये? इसलिए हम उस मैनेजर को समझायें कि, 'भाईजी, मुझे इसमें कोई मुनाफा नहीं होता'। अटा-पटाकर पाँच में निपटारा करें और नहीं माने तो आखिर दस हजार रुपये देकर भी हमारा चेक ले लेना। अब वहाँ, 'मैं ऐसे रिश्वत कैसे दे सकता हूँ?' ऐसा करेंगे तो इन लोगों को जवाब कौन देगा? वह माँगनेवाला बड़ी-बड़ी गालियाँ देंगे! जरा समझ जाइये, समयानुसार समझ जाइये। रिश्वत देना गुनाह नहीं है। जिस समय जो व्यवहार आया उसे एडजस्ट करना तुझे नहीं आया वह गुनाह है। अब ऐसे में कहाँ तक दूम पकडकर रखना? हम से एडजस्ट हो सके, हमारे पास बैंक बैलेंस हो और लोग हमें भला-बुरा नहीं कहे, वहाँ तक पकड़े रहना, पर बैंक बैलेंस से ऊपर जाता हो और लोग भला-बुरा कहने लगे तो क्या करना? आपको क्या लगता है? प्रश्नकर्ता : हाँ, बराबर है। दादाश्री : मैं तो हमारे व्यापार में कह देता था कि, 'भाई, दे आइये रुपये, हम भले ही चोरी नहीं करते, मनमानी नहीं करते, मगर रुपये दे आइये।' वरना लोगों को धक्के खिलाना वह हम जैसे भले लोगों का काम नहीं। अर्थात् रिश्वत देना, उसे मैं गुनाह नहीं समझता। गुनाह तो, उसने हमें माल दिया है और हम उसे समय पर पैसे नहीं देते, उसे गुनाह कहता हूँ। रास्ते में अगर कोई लुटेरा आपसे पैसे माँगे तब आप दे देंगे कि नहीं? या फिर सत्य के खातिर नहीं देंगे? प्रश्नकर्ता : दे देने पड़े। दादाश्री : क्यों दे देते हो वहाँ? और यहाँ क्यो नहीं देते? ये दूसरे प्रकार के लुटेरे हैं। आपको नहीं लगता कि ये दूसरे प्रकार के लुटेरे हैं? ____ तब ये दूसरे प्रकार के लुटेरे! ये सुधरे हुए और वे बगैर सुधरे लुटेरे! ये सिविलाइजड् लुटेरे! वे अनसिविलाइजड् लुटेरे !!! प्रश्नकर्ता : आपश्री भगवान प्राप्ति के मार्ग पर मुड़ गये, साथ ही

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