Book Title: Paiso Ka Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 26
________________ पैसों का व्यवहार पैसों का व्यवहार ___ दादाश्री : अरे दुकान घाटे में चलती है, तू घाटे में चलता है क्या? घाटे में तो दुकान चलती है। दुकान का स्वभाव ही ऐसा है कि घाटे में भी चले और फिर मुनाफा भी करवाये। अर्थात् वह घाटा और मुनाफा, दोनो दिखाती रहेगी। ___ हम (दादाजी) धंधा करने से पहले क्या करें? स्टीमर समुद्र में तैरायें तब महाराज के पास सारी पूजा करवायें, सत्यनारायण की कथा अन्य विधियाँ सब करवायें। कभी कभी स्टीमर का पूजन भी करें, फिर उस स्टीमर के कानों में हम कह दें कि, 'तुझे डुबना हो तब डुब जाना, हमारी इच्छा नहीं है ! ऐसी हमारी इच्छा नहीं है!!' ऐसे 'ना' कह दें इसलिए फिर निःस्पृह हो गये कहलाये, फिर वह तो डुब जाये। हमारी इच्छा नहीं है, ऐसा कहा यानि वह शक्ति काम करती है। और यदि वास्तव में डुब गई तो हम समझेंगे कि उसे कान में कहा ही था। हमने नहीं कहा था क्या? अर्थात् एडजस्टमेन्ट स्थापित करें तब पार उतरें ऐसा है इस संसार में। __मन का स्वभाव ऐसा है कि उसकी धारणा के अनुसार नहीं होने पर निराश हो जायेगा। ऐसा न हो इसलिए इस तरह से रास्ते निकालने होंगे। फिर छ: महीने के बाद डुबे या फिर दो साल के बाद, मगर तब हम 'एडजस्टमेन्ट' ले लें कि छ: महीने तो चला। व्यापार माने इस पार या उस पार। आशा के महल निराशा लाये बगैर नहीं रहते। संसार में वीतराग रहना बड़ा मुश्किल है। वह तो हमारी (दादाजी की) ज्ञानकला और बुद्धिकला, दोनों जबरदस्त होने से हम वीतराग रह पायें। पहले एक बार, ज्ञान होने से पहले हमारी कंपनी को घाटा हुआ था। तब हमें सारी रात नींद नहीं आती थी और चिंता रहती थी। तब भीतर से जवाब आया कि इस घाटे की चिंता कौन कौन करता होगा? मझे लगा कि मेरे हिस्सेदार तो शायद चिंता नहीं भी करते हों। मैं अकेला ही करता होऊँ। और बीवी-बच्चे सभी हिस्सेदार हैं तब वे तो कुछ जानते नहीं। अब वे लोग धंधे के बारे में कुछ नहीं जानते तब भी उनका संसार चलता है, तो मैं अकेला ही कमअक्ल हूँ, जो सारी चिंता लिए बैठा हूँ! फिर मुझे अक्ल आ गई। औरों की तरह आप एक ही पक्ष में पड़े हैं, मुनाफे के पक्ष में। आप लोगों से विरुद्ध चलें। लोग मुनाफा चाहें तो हम कहे 'घाटा हो' और घाटा खोजनेवाले को कभी चिंता नहीं होगी। मुनाफा खोजनेवाला हमेशा चिंता में रहेगा और घाटा तलाशनेवाले को कभी चिंता ही नहीं होगी, उसकी हम गारन्टी देते हैं। हमारी बात समझें? धंधा शुरू करते ही हमारे लोग क्या कहे? इस काम में चौबीस हजार तो अवश्य मिलेंगे!! अब जब फोास्ट (आगाही) करता है, तब बदलते संयोग लक्ष में लिए बगैर यों ही फोकास्ट करता है। हमने भी सारी जिन्दगी कान्ट्रैक्ट में गजारी है. सभी तरह के कान्ट्रैक्ट किये हैं। और समुद्र में जेटियाँ भी बनाई हैं। धंधे की शुरूआत में मैं क्या करता था? जहाँ पाँच लाख का मुनाफा होनेवाला हो वहाँ धारण कर कि एकाध लाख मिले तो काफी है। अगर बिना नफा-नुकसान, इन्कमटैक्स निकले और हमारा भोजन खर्च निकले तो बहुत हो गया। फिर मिलें तीन लाख। तब मन का आनंद देखिये, क्योंकि धारणा से कहीं अधिक प्राप्त हुए। और यह तो चालीस हजार की धारणा की हो और बीस मिले तो दुःखी हो जाये। धंधे के दो लड़के, एक का नाम घाटा और दूसरे का नाम मुनाफा। घाटे नामक बेटा कोई पसंद नहीं करता, पर दोनों होंगे ही। हम मेहनत करते समय चहुँ ओर का ध्यान रखते है, फिर भी कुछ नहीं मिले तो समझ लेना कि हमारे संयोग सीधे नहीं है। अब वहाँ बहुत जोर लगाएँ तो उलटे घाटा होगा, उसके बजाय हमें आत्मा संबंधी कुछ कर लेना चाहिए। पिछले अवतार में ऐसा नहीं किया, इसलिए तो यह झंझट हुई। हमारा ज्ञान दिया हो उसकी तो बात ही निराली है, पर हमारा ज्ञान नहीं मिला हो तब भी कई भगवान के भरोसे छोड देते हैं न! उन्हें क्या करना पड़ता है? 'भगवान जो करे वह सही' कहते हैं न? और बुद्धि से नापने जायें तो कभी तौल मिले ऐसा नहीं है। जब संयोग अच्छे नहीं हो तब लोग कमाने निकलते है। तब तो

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