Book Title: Paiso Ka Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 41
________________ पैसों का व्यवहार पैसों का व्यवहार करे। लोभी को हर तरह का लोभ होगा जो उसे हर जगह खीच जाये। प्रश्नकर्ता : लोभी होना कि किफ़ायतशार (किफ़ायतरूप से बचत करनेवाला)? दादाश्री : लोभी होना वह गुनाह है। किफ़ायतशार होना वह गुनाह नहीं है। 'इकोनोमी' (किफ़ायत) किसका नाम? पैसे आये तब खर्च भी करे और तंगी में पैसों के लिए दौड़-धूप भी नहीं करे। हमेशा कर्ज लेकर कार्य मत करना। कर्ज लेकर व्यापार कर सकते हैं मगर मौज-शौक नहीं कर सकते। कर्ज लेकर कब खाये? जब मरने का वक्त आये तब। वरना कर्ज लेकर घी नहीं पी सकते। प्रश्नकर्ता : दादाजी, कंजूसी और किफ़ायत में अंतर है क्या? दादाश्री : हाँ, बड़ा अंतर है। हजार रुपये माहवार कमाते हों तो आठ सौ रुपये खर्च करना, और पाँच सौ आते हों तो चार सौ खर्च करना, इसका नाम किफ़ायत। जब कि कंजस तो चार सौ के चार सौ ही खर्च करेगा, फिर भले ही हजार आये कि दो हजार आये। वह टैक्सी में नहीं जायेगा। किफ़ायत तो, इकोनोमिक्स-अर्थशास्त्र है। किफ़ायतशार तो भविष्य की मुश्किलों पर नजर रखे। कंजूस को देखकर दूसरों को चीढ़ होगी कि कंजूस है। किफायतशार को देखकर चीढ़ नहीं होगी। घर में किफ़ायत कैसी होनी चाहिए? बाहर खराब नहीं दिखें ऐसी किफायत होनी चाहिए। किफ़ायत रसोई में पहुँचनी नहीं चाहिए। उदार किफ़ायत होनी चाहिए। रसोई में किफ़ायत घुसें तो मन बिगड़ जायेगा, कोई महेमान आये तो भी मन बिगड़ जाये कि चावल खतम हो जायेंगे! कोई बहुत फ़जूलखर्ची हो, उसे हम कहें कि 'नॉबल' (उमदा) किफ़ायत कीजिए। पैसे कमाने की भावना करने की जरूरत नहीं है, प्रयत्न भले ही चालू रहे। ऐसी भावना से क्या होता है कि, पैसे मैं खींच लूँ तो सामनेवाले के हिस्से में रहेंगे नहीं। इसलिए जो कुदरती क्वोटा (हिस्सा) निर्माण हुआ है उसे ही हम कायम रखें। लोभ माने क्या? दूसरों का हड़प लेना। फिर कमाने की भावना करने की जरूरत ही क्या है? मरनेवाला है उसे मारने की भावना करने की क्या जरूरत? ऐसा कहना चाहता हूँ। इस एक वाक्य में, लोगों के कई पाप होते अटक जायें, ऐसा मैं समझाना चाहता हूँ! लोभ को लेकर जो आचरण होता है न, वह आचरण ही उसे जानवरयोनि में ले जाये। ___ आप अच्छे मनुष्य हैं और यदि आप नहीं ठगे जायेंगे तो दूसरा कौन ठगा जानेवाला है? नालायक तो ठगा नहीं जायेगा। ठगे जायें तभी हमारी खानदानी कहलायेगी न! इसलिए हम (दादाजी) लोभी द्वारा ठगे जायें। क्योंकि ठगे जाकर मुझे मोक्ष में जाना है। मैं यहाँ पैसे जमा करने नहीं आया हूँ। और मैं यह भी जानता हूँ कि वे नियम के अधीन ठगते हैं कि अनियम से। मैं यह जानकर बैठा हूँ इसलिए हर्ज नहीं। ___मैं भोलेपन से नहीं ठगा गया। मुझे मालुम है कि ये सभी मुझे ठग रहे हैं। मैं जान-बूझकर ठगा जाऊँ। भोलेपन से ठगे जानेवाले पागल कहलाये। हम कहीं भोले होते होंगे? जो जान-बुझकर ठगे जायें, वे भोले होंगे क्या? हमारे हिस्सेदार ने एक बार मुझ से कहा कि, 'आप के भोलेपन का लोग फ़ायदा उठाते हैं।' तब मैंने कहा कि, 'आप मुझे भोला समझते हैं, इसलिए आप ही भोले हैं। मैं समझकर ठगा जाता हूँ।' तब उन्हों ने कहा कि, 'मैं दुबारा ऐसा नहीं बोलूंगा।' मैं जानू कि इस बेचारे की मति ऐसी है। उसकी नीयत ऐसी है। इसलिए उसे जाने दो। 'लेट गो' करो न! हम कषायों से मुक्त होने आये हैं। कषाय नहीं हो इसलिए हम ठगे जाते हैं, दूसरी बार भी ठगे जायें। जान-बूझकर ठगे जानेवाले कम होंगे न?

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