Book Title: Paiso Ka Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 40
________________ पैसों का व्यवहार ६८ पैसों का व्यवहार इस संसार में अंतराय कैसे पड़ता है यह मैं आपको समझाऊँ। आप जिस आफिस में नौकरी करते हैं वहाँ आपके असिस्टन्ट (सहायक) को बगैर अक्ल का कहें, वह आपकी अक्ल पर अंतराय पड़ा। बोलिये, अब इस अंतराय से सारा संसार फँसकर यह मनुष्य जन्म व्यर्थ गँवाता है! आपको 'राइट' (अधिकार) ही नहीं है, सामनेवाले को बिना अक्ल का कहने का। आप ऐसा बोलें इसलिए सामनेवाला भी उलटा बोलेगा, इससे उसे भी अंतराय पड़ेगा। बोलिये अब, इस संसार में अंतराय पड़ने कैसे बंद होंगे? किसी को आपने नालायक कहा तो आपकी लियाक़त (पात्रता) पर अंतराय पड़ता है। आप तुरन्त ही इसका प्रतिक्रमण करें तो अंतराय पड़ने से पहले धुल जायेगा। प्रश्नकर्ता : नौकरी के फर्ज अदा करते, मैंने बहुत कड़ाई से लोगों के अपमान किये थे, दुत्कार दिया था। दादाश्री: इन सभी का प्रतिक्रमण करना। उसमें आपका इरादा बुरा नहीं था. अपने खद के लिए नहीं, सरकार के लिए किया था सब। इसलिए वह सिन्सीयारीटी (निष्ठा) कहलाये। [५] लोभ से खड़ा संसार जो चीज प्रिय हो गई हो उसी में मुर्छित रहना, उसका नाम लोभ । वह चीज़ प्राप्त होने पर भी संतोष नहीं होता। लोभी तो, सुबह जागा तब से रात आँख मूंदने तक, लोभ में ही रहेगा। सुबह जागा तब से लोभ की ग्रंथि जैसे दिखाये वैसे किया करें। लोभी हँसने में भी वक्त नहीं गवाता, सारा दिन लोभ में ही होगा। लोभी, सब्जी बाजार जाये तब भी सस्ती ढेरियाँ खोजकर सब्जी लेगा। लक्ष्मीजी तो अपने आप आने के लिए बंधी हुई है। ऐसे हमारे संग्रह करने से संग्रहित नहीं होती कि आज संग्रह करें और पच्चीस साल बाद, बेटी ब्याहते समय तक रहेगी। उस बात में कुछ नहीं रखा है। जो वस्तुएँ सहज में मिले उनका इस्तमाल करना, फेंक मत देना। सद्रास्ते इस्तेमाल करना। बहुत जमा करने की इच्छा नहीं करना। जमा करने का एक नियम होना चाहिए कि हमारी पूँजी में इतना (अमुक मात्रा में) तो चाहिए। फिर उतनी पूँजी रखकर, शेष योग्य जगह पर खर्च करना। लक्ष्मी को फेंक नहीं सकते। लोभ का प्रतिपक्ष शब्द है संतोष । पूर्वभव में थोड़ा-बहुत ज्ञान समझा हो, आत्मज्ञान नहीं पर संसारी ज्ञान समझा हो तब उसे संतोष उत्पन्न हुआ हो। और जहाँ तक ऐसा ज्ञान उसकी समझ में नहीं आता वहाँ तक लोभ बना रहेगा। ____ अनंत अवतार खुद ने इतना कुछ भोगा हो, उसका फिर उसे संतोष रहे कि अब कुछ नहीं चाहिए। और जिसने नहीं भोगा हो, उसे कुछ न कुछ लोभ बना रहेगा। फिर उसे, यह भुगतें (भोगें), वह भुगतें, फलाँ भुगतें, ऐसा रहा करेगा। प्रश्नकर्ता : लोभी थोड़ा कंजूस भी होगा न? दादाश्री : नहीं। कंजूस, वह अलग है। कंजूस तो अपने पास पैसे नहीं होने की वजह से कंजूसी करता है। और लोभी तो घर में पच्चीस हजार पड़े होने पर भी गेहूँ चावल सस्ते कैसे मिलें, घी कैसे सस्ता मिले, ऐसे जहाँ-तहाँ उसका चित्त लोभ में ही होगा। सब्जी बाजार जाये तो किस जगह सस्ती ढेरियाँ मिलती है वही खोजता रहता हो! लोभी कौन कहलाये कि जो हर एक बात में जाग्रत हो। प्रश्नकर्ता : लोभी और कंजूस में क्या फर्क? दादाश्री : कंजूस तो केवल लक्ष्मी की ही कंजूसी करे। लोभी तो हर तरफ से लोभ में रहेगा। मान का भी लोभ करे और लक्ष्मी का भी लोभी व्यक्ति भविष्य के लिए सारा जमा करें। फिर बहुत जमा होने पर, दो बड़े-बड़े चूहे घुस जाये और सब सफाया कर जाये! लक्ष्मी जमा करना, पर बगैर इच्छा के। लक्ष्मी आती हो तो रोकना नहीं और नहीं आती तो गलत उपायों से उसे खींचना नहीं।

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