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पैसों का व्यवहार
पैसों का व्यवहार
भर लाया। तब उसका पुण्य खर्च हुआ इसलिए लक्ष्मी के ढेर के ढेर लगे। दूसरा (व्यक्ति) बुद्धि के आशय में लक्ष्मी प्राप्त करना ऐसा लेकर तो आया लेकिन उसमें पुण्य काम आने के बजाय पापफल सामने आया। इसलिए लक्ष्मी मुँह ही नहीं दिखाती। यह तो इतना स्पष्ट हिसाब है कि किसी का जरा-सा भी चले ऐसा नहीं है। तब ये अभागे ऐसा मान लेते हैं कि मैं दस लाख रुपये कमाया। अरे, यह तो पुण्य खर्च हुआ और वह भी उलटी राह। इसके बजाय तेरा बुद्धि का आशय बदल। धर्म के लिए ही बुद्धि का आशय बाँधने योग्य है। ये जड़ वस्तुएँ मोटर, बंगला, रेडियो इन सब की भजना करके उनके लिए ही बुद्धि का आशय, बाँधने योग्य नहीं है। धर्म के लिए ही, आत्मधर्म के लिए ही बुद्धि का आशय रखें। वर्तमान में आपको जो प्राप्त है वह भले हो, पर अब तो आशय बदलकर केवल संपूर्ण शत-प्रतिशत धर्म के लिए ही रखें।
हम अपने बुद्धि के आशय में शत-प्रतिशत धर्म और जगत कल्याण की भावना लाये हैं। अन्य किसी जगह हमारा पुण्य खर्च ही नहीं हुआ। पैसे, मोटर, बंगले, लडका, लड़की, कहीं भी नहीं।
हमें जो जो मिले और ज्ञान ले गये, उन्हों ने दो-पाँच प्रतिशत धर्म के लिए-मुक्ति के लिए डाले थे, तभी हम (दादाजी) मिले। हमने शतप्रतिशत धर्म में डाले, इसलिए सब जगह से ही हमें धर्म के लिए 'नो अॅब्जेक्शन सर्टिफिकेट' प्राप्त हुआ है।
कोई बाहर का आदमी मेरे पास व्यवहार से सलाह लेने आये कि 'मैं इतनी माथापच्ची (झंझट) करता हूँ लेकिन कुछ परिणाम नहीं निकलता।' तब मैं कहूँ, 'अभी तेरे पाप का उदय है। इसलिए किसी से उधार रुपये लायेगा तो रास्ते में तेरी जेब कट जायेगी। अभी तू घर बैठकर आराम से जो भी शास्त्र पढ़ता हो वह पढ़ और भगवान का नाम लिया कर।'
पाप का पूरण करता है (बीज बोता है), वह जब गलन होगा (फल आयेगा) तब मालूम होगा! तब तेरे छक्के छूट जायेंगे! अग्नि के ऊपर बैठे हैं ऐसा लगेगा!! पुण्य का पूरण करेगा तब मालूम होगा कि कुछ
निराला ही आनंद आता है ! इसलिए जिसका भी पूरण करें वह सोचसमझकर करना, कि गलन होते समय परिणाम क्या आता है। पूरण करते समय लगातार चौकन्ने रहना, पाप करते समय, किसी को छलकर पैसे जमा करते समय, लगातार ध्यान रखना कि वह भी गलन होनेवाला है। वह पैसा बैंक में रखोगे तब भी वह जानेवाला तो है ही। उसका भी गलन तो होगा ही। और वह पैसा जमा करते समय जो पाप किया, जो रौद्रध्यान किया, वह उसकी धाराओं के साथ आयेगा वह मुनाफे में और जब उसका गलन होगा तब तेरी क्या हालत होगी?
कुदरत क्या कहती है? उसने कितने रुपये खर्च किये वह हमारे यहाँ देखा नहीं जाता। यहाँ तो, वेदनीय कर्म क्या भगता? शाता या अशाता, उतना ही हमारे यहाँ देखने में आता है। रुपये नहीं होने पर भी शाता भुगतेगा
और रुपये होने पर भी अशाता भुगतेगा। अर्थात् वह जो शाता या अशाता वेदनीय कर्म भुगतता है, उसका रुपयों पर आधार नहीं रहता।
अभी आपकी थोडी आमदनी हो, बिलकुल शांति हो, कुछ झंझट नहीं हो, तब कहना कि 'चलो, भगवान के दर्शन कर आयें!' और ये सारे, जो पैसे कमाने में रहे, वे ग्यारह लाख की कमाई करे इसमें हर्ज नहीं, लेकिन अभी पचास हजार का घाटा होने पर अशाता वेदनीय खडी होगी।'अरे, ग्यारह लाख में से पचास हजार कम कर दे न!' तब कहेगा कि 'नहीं, वह तो उसमें रकम घट जायेगी न!' तब, रकम तू किसे कहता है? कहाँ से आयी यह रकम? वह तो जिम्मेदारीवाली रकम थी, इसलिए कम होने पर चिल्लाना नहीं। रकम बढ़ने पर तू खुश होता है और कम होने पर? अरे, सच्ची पूँजी तो 'भीतर' पड़ी है, उसे क्यों हार्ट 'फेइल' करके सारी पूँजी बरबाद करने में लगा है! हार्ट 'फेइल' करे तब सारी पूँजी खतम हो जाये कि नहीं?
दस लाख रुपये बाप ने लड़के को दिये हो और बाप कहेगा कि 'अब मैं आध्यात्मिक जीवन जीऊँ!' तब वह लडका रोजाना शराब में, मांसाहार में, शेयर बाजार में, आदि में वह पैसा गँवा दें। क्योंकि जो पैसे गलत रास्तों से जमा हुए हैं, वे खुद के पास रहेंगे नहीं। आज तो खरा