Book Title: Paiso Ka Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 12
________________ पैसों का व्यवहार ११ पैसों का व्यवहार भी दुःख। लोग परेशान करते हों उसमें कमाना, कई तो उगाही के पैसे नहीं देते। इसलिए कमाते भी दुःख और सँभालते भी दुःख। सँभाल सँभाल करने पर भी बैंक में रहते ही नहीं न! बैंक खाते का नाम ही क्रेडिट और डेबिट, पूरण (जमा) और गलन ! लक्ष्मी जाये तब भी बहुत दुःख दे! कई लोग तो इन्कमटैक्स पचाकर बैठ गये होते हैं। पच्चीस-पच्चीस लाख दबाकर बैठे गये होते हैं। लेकिन वे जानते नहीं कि सभी रुपये जाते रहेंगे। फिर इन्कमटैक्सवाले नोटिस देंगे तब रुपये कहाँ से निकालेंगे? यह तो निरा फंसाव है। इस तरह ऊपर चढ़े हुए की भारी जोखिमदारी है पर वह जानता ही नहीं न! उलटे सारा-दिन किस तरह इन्कमटैक्स बचाएँ, यही ध्यान। इसलिए ही हम कहते हैं न कि ये तो तिर्यंच (जानवर गति) का रिटर्न टिकट लेकर आये हैं! सारे संसार की मेहनत (कोल्हू के बैल की तरह) घान निकाल निकालकर व्यर्थ जाती है, वहाँ बैल को खली दें. जब कि यहाँ बीवी हाँडवे का ढेला दें, ताकि चले, सारा दिन बैल की तरह घान निकाल निकाल करता है। अहमदाबाद के सेठों को दो-दो मिलें हैं फिर भी उनके ऊमस (तनाव)का यहाँ पर वर्णन नहीं कर सकें ऐसा है। दो दो मिलें होने पर भी वे कब फेइल हो जायें यह नहीं कह सकते। स्कुल में अव्वल दर्जे में पास हुए थे पर यहाँ फेइल हो जायें। क्योंकि उन्होंने बेस्ट-फुलिशनेस शुरू की है। 'डीसऑनेस्टी इस ध बेस्ट फुलिशनेस'! (अप्रामाणिकता सर्वोपरि मूर्खता है।) इस फूलिशनेस (मूर्खता) की कोई तो हद होगी न? या फिर सारी हदें पार कर के बेस्ट तक पहूँचना? तभी आज बेस्ट फूलिशनेस तक पहुँचे! मैंने पैसों का हिसाब लगाया था। अगर हम पैसे बढ़ाया करें तो कहाँ तक पहुँचेंगे? इस दुनिया में किसी का हमेशा पहला नंबर नहीं आया है। लोग कहते हैं कि 'फोर्ड का नंबर पहला है।' पर चार साल के बाद किसी दूसरे का नाम सुनने में आता है। अर्थात् किसी का नंबर टिकता नहीं है। बिना वजह यहाँ दौड़-धूप करें, उसका क्या अर्थ ? रेस में पहले घोड़े को इनाम मिलता है, दूसरे-तीसरे को थोड़ा मिलता हैं और चौथे को तो दौड़ दौड़ कर मर जाने का! मैंने कहा, "इस रेसकोर्स में मैं क्यों उतरूँ?" तब ये लोग तो मुझे चौथा, पाँचवा, बारहवाँ या सौवाँ नंबर देंगे। तो फिर हम किस लिए दौड दौड कर हाँफें ? क्या हारते नहीं लोग? पहला आने के लिए दौड़ा और आया बारहवाँ, फिर कोई हमसे पूछे तक नहीं। लक्ष्मी लिमिटेड है और लोगों की माँग 'अनलिमिटेड है!' किसी को विषय की अटकन (मूर्छा रूपी बाधा) होती है, किसी को मान की अटकन पड़ी हो, ऐसी तरह तरह की अटकन (मूर्छा रूपी बाधायें) पड़ी होती है। अर्थात् इस तरह पैसों की अटकन पड़ी होती है, इसलिए सुबह उठा तब से पैसे का ध्यान रहा करे। यह भी बड़ी अटकन कहलाये। प्रश्नकर्ता : लेकिन पैसे के बगैर चलता नहीं न! दादाश्री : चलता नहीं, मगर पैसे किस तरह आते हैं यह लोग जानते नहीं और पीछे दौड-दौड करते हैं। पैसे तो पसीने की तरह आते हैं। जैसे किसी को पसीना ज्यादा आता है और किसी को कम आये लेकिन पसीना आये बिना नहीं रहता, इस प्रकार यह पैसे लोगों को आते ही हैं। मुझे तो मूलतः पैसे की अटकन ही नहीं थी। बाईस साल का था तब से मैं धंधा करता था और फिर भी मेरे घर आनेवाला मेरे धंधे की कोई बात जानता ही नहीं था। उलटे मैं उनसे पूछ-पूछ करता 'आपको क्या अड़चन है?' पैसा तो याद आये तो भी बहुत जोख़िम है, तब पैसे की भजना करना उसमें कितना बड़ा जोखिम होगा? मनुष्य एक जगह भजना (पूजा)कर सके, या तो पैसे की भजना कर सके या तो आत्मा की। दो जगह एक मनुष्य का उपयोग रहता नहीं।

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