Book Title: Oghniryukti
Author(s): Dronacharya, 
Publisher: Agamoday Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 414
________________ श्रीओघनियुक्तिः द्रोणीया वृत्तिः ॥२०६॥ OPERASASKA*** Stats साहू उद्वेइ, सोवि ततिए मंडलए तिण्णि वारा लेइ, लिंतस्स जदि न सुज्झति ताहे भग्गो कालो, एत्थ लंताण साहूण| कालग्रहण नव वारावसाणे पभा फुट्टति, ततो तीए वेलाए पडिक्कमन्ति, अह तिण्णि कालगाहिणो नत्थि किंतु दुवे चेव, तत्तो इक्को विधिः पढमं पढमकालमंडलए तिणि वारा उ लेऊण ततो बितिए दो वारे गिण्हइ, ततो बितिओ साहू बीयए चेव कालमंड- | नि.६६० लए एक वारं लेऊण ततो तइए मंडले तिन्नि वारातो गेण्हइ, एवं चेव नव वारा हवंति, अहवा पढमे चेव कालमंडलए भा. ३११ एगो चत्तारि वाराओ लेइ, बितिओ पुण बितिए कालमंडलए दो वाराओ लेइ, ततिए तिन्नि वाराउ लेइ सो व बितिओ, एवं वा दोण्हं साहूणं नव वाराओ भवंति, अह एक्को चेव कालग्गाही ततो अववाएण सो चेव पढमे तिनि वारा लेइ, पुणो सो चेव बितिए मंडले तिन्नि वारा लेइ, पुणो सो चेव ततिए मंडलए तिन्नि चेय वाराओ लेइ । एसो पाभाइकालस्स विही । एवं च सति कालस्स पडिक्कमिचा सुवंति, एगो न पडिक्कमति, सो अववाएण काल निवेदिस्सइ ॥ इदानीं यदुक्तं "वासासु य तिणि दिस"त्ति तळ्याख्यानयन्नाहवासासुयतिणि दिसा हवंति पाभाइयम्मिकालंमि।सेसेसुतीसुचउरो उउंमि चउरोचउदिसंपि॥३११॥(भा०) __ वर्षासु तिम्रो दिशो यदि कुड्यादिभिस्तिरोहिता न भवन्ति ततः प्राभातिककालग्रहणं क्रियते, शेषेषु त्रिषु कालेषु चतस्रोऽपि दिशो यदि कुड्यादिभिस्तिरोहिता न भवन्ति ततो गृह्यन्ते कालाः १, नान्यथा, 'उमि बउरो चउदिसंपि'त्ति ॥२०॥ ऋतुबद्धे काले चत्वारोऽपि काला गृह्यन्ते यदि चतस्रोऽपिदिशोऽतिरोहिता भवन्ति नान्यथा, एतदुक्तं भवति-पतसृष्वपि दिक्षु यद्यालोको भवति ततश्चत्वारोऽपि कालागृह्यन्ते। इदानीम् “उउबद्धे तारका तिपिण"ति व्याख्याय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456