Book Title: Nyayasindhu Prakaranam
Author(s): Vijaynemusuri
Publisher: Chimanlal Gokaldas Ahmedabad
View full book text
________________
विषयानुक्रमणिका
(२१)
विर्षयः
श्लोकः नये प्रमाणलक्षणातिव्याप्तेरुद्धरणम् ८९५ (८९६-९७ केवलज्ञानस्यैव मुख्यतः प्रमाणत्वं प्रमात्वञ्चेति दर्शितम् . मत्यादीनां गुणतः प्रमात्वं प्रथममुपदर्य मुख्यतः प्रमात्वमुपपादितम्
८९८-९०० प्रमायां भेदांशगोचरत्वेन नयत्वमपीति दर्शितम् ९०१ मानस्य नयसमूहत्वोक्तेराशय उपदर्शिता
९०२-३ मानयदुर्नयवचनानामुपदर्शनम्
९०४ चार्वाकवौद्धवैशेषिकादीनां प्रत्यक्षाधेकद्वित्रादिप्रमाणा__ भ्युपगमप्रकार उपदर्शितः ९०५-६ (दर्शितम् ९०७ जैनमते प्रत्यक्षपरोक्षभेदेन प्रमाणद्वैविध्य प्रत्यक्षलक्षणञ्च सांव्यवहारिकपारमार्थिकाभ्यांप्रत्यक्षद्वैविध्यमुपदर्शितम्९०८ पारमार्थिकस्य सकलविकलभेदेन द्वैविध्य केवलज्ञानं __ सकलमिति च दर्शितम् ९०९ (शिंतम् ९१०-११ केवलस्य ज्ञानदर्शनाभ्यां द्वैविध्य तदुत्पत्यादि च दज्ञानदर्शनयोयौंगपा क्रमोत्थत्वं यौगपद्यश्च मल्लवादि जिन
भद्रगणिक्षमाश्रमणसिद्धसेनदिवाकरमतभेदेन दर्शितम् तत्र यौगपद्याभ्युपगन्तुमल्लवादिन आशय उपवर्णितः९१४-१८ जिनभद्रगणिक्षमाश्रमणमतं तद्भाष्यादितोऽवसेयमिति
दर्शितम् ऐक्याभ्युपगन्तुसिद्धसेनदिवाकरस्य मतमुपपादितम्९२०-२३ विकलपारमार्थिकप्रत्यक्षनिरूपणम् तत्र अवधिज्ञाननिरूपणम्
९२५ तस्य भवप्रत्ययत्वं गुणप्रत्ययत्वं चोपदर्शितम् ९२६ तत्र छायातमः प्रभृतीनां पौद्गलिकत्वमुपदर्शितम् ९२७-२८ रूपादीनां चतुर्णा पुद्गलमात्र सत्त्वं व्यवस्थापितम् ९२९ पृथिव्यादिपरमाणुभ्यः पुद्गलैकजातीयेभ्यो शक्तिप्रभावाद्भ__ म्यादिविचित्रकार्यजनिरुपपादिता
९३०.३१ शक्तिविचारः तत्र मीमांसकस्य शक्त्यभ्युपगमप्रकार उपदर्शितः ९३३ शक्तयनभ्युपगन्तुनैयायिकस्य मतमुपवर्णितम् ९३४३५. एकान्तवादिनो मीमांसकस्यातिरिक्तशक्तिपक्षे गौरव. मुपदर्शितम् ९३६
( शितम् ९३७-३८ न्यायमते तृणादिजन्येषु वद्विषु वैजात्यकल्पनमुपदर्य
शक्तयभ्युपगन्तृमीमांसकमते तदकल्पनलाघषमुपद
. ९२४
९३२

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 ... 286